Published On :
10-Apr-2025
(Updated On : 10-Apr-2025 10:54 am )
गर्म होती पृथ्वी: मार्च 2025 ने फिर दी जलवायु संकट की चेतावनी.
Abhilash Shukla
April 10, 2025
Updated 10:54 am ET
गर्म होती पृथ्वी: मार्च 2025 ने फिर दी जलवायु संकट की चेतावनी
तापमान में लगातार हो रही वृद्धि लगातार बढ़ते पारे के साथ पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन का खतरा भी गंभीर होता जा रहा है। तापमान में हो रही बढ़ोतरी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। मार्च 2025 में वैश्विक तापमान फिर से 1.5 डिग्री सेल्सियस की चेतावनी रेखा को पार कर गया।
मार्च 2025: इतिहास का दूसरा सबसे गर्म मार्च यूरोपीय संस्था कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2025 जलवायु इतिहास का दूसरा सबसे गर्म मार्च रहा। इस महीने वैश्विक औसत तापमान 14.06 डिग्री सेल्सियस रहा, जो औद्योगिक युग से पहले की तुलना में 1.6 डिग्री अधिक था। यह वृद्धि 1991 से 2020 के औसत तापमान की तुलना में 0.65 डिग्री अधिक है।
लगातार खतरे की ओर इशारा करते आंकड़े मार्च 2024 अब तक का सबसे गर्म मार्च था, और मार्च 2025 उससे मात्र 0.08 डिग्री कम रहा। वहीं, 2016 के मुकाबले इस बार तापमान 0.02 डिग्री अधिक रहा। बीते 21 महीनों में से 20 महीनों में तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया है। अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक का औसत तापमान 1.59 डिग्री अधिक रहा।
समुद्र भी हो रहे हैं गर्म मार्च 2025 में समुद्र की सतह का औसत तापमान 20.96 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो इस महीने को अब तक का दूसरा सबसे गर्म मार्च बनाता है। भूमध्य सागर और उत्तरी अटलांटिक के कई हिस्से अत्यधिक गर्म रहे। इसका कारण मानव गतिविधियों से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसें हैं, जो वायुमंडल को गर्म कर समुद्रों का तापमान और जलस्तर दोनों बढ़ा रही हैं।
समुद्री उष्ण तरंगों में भी वृद्धि संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) के अनुसार, 1982 से 2016 के बीच समुद्री उष्ण तरंगों की आवृत्ति दोगुनी हो गई है। 1980 के दशक के बाद से ये तरंगें अधिक लंबी और तीव्र होती जा रही हैं।
भारत पर जलवायु संकट का प्रभाव क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025 के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में भारत में हर साल औसतन 4.66 करोड़ लोग जलवायु आपदाओं से प्रभावित हुए हैं। इन आपदाओं में हर साल औसतन 2,675 लोगों की जान गई है और 2,000 करोड़ डॉलर से अधिक की आर्थिक हानि हुई है, जो भारत की जीडीपी का लगभग 0.31% है। इस सूचकांक में भारत छठे स्थान पर है, जबकि डॉमिनिका पहले और चीन दूसरे स्थान पर हैं।
दुनियाभर में भी गहरा असर पिछले तीन दशकों में चरम मौसमी घटनाओं के कारण दुनियाभर में करीब 8 लाख लोगों की मौत हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था को इससे 4,20,000 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। इस अवधि में दुनिया को 9,400 से अधिक चरम मौसमी आपदाओं का सामना करना पड़ा।
निष्कर्ष मार्च 2025 के तापमान और समुद्री गर्मी के आंकड़े स्पष्ट संकेत देते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक और बढ़ता हुआ संकट है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस और त्वरित कदम उठाना अब और भी ज़रूरी हो गया है।