आखिर कैसे मिला डीजल में पानी, क्या करता है ‘जिम्मेदार’ प्रशासन?.


रतलाम के एक पेट्रोल पंप वाले ने गलती से ही सही प्रदेश के पेट्रोल पंपों की हकीकत उजागर कर दी है। हर साल बारिश में पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में गाड़ियों के इंजिन पानी मिले पेट्रोल-डीजल के कारण खराब होते हैं, लेकिन संबंधित विभाग कभी जागते नहीं। ग्राहक अपने स्तर पर शिकायत करने जाता है तो उसे फटकार कर भगा दिया जाता है। कोई बहुत ही हिम्मती निकला तो उपभोक्ता फोरम के चक्कर लगाता रहता है, लेकिन होता कुछ नहीं।
वो तो अच्छा हुआ कि सीएम साहब के काफिले की गाड़ियों में पानी मिला डीजल भरा गया। जब एक साथ 19 इनोवा बंद हो गई तो सच्चाई का पता चला। आनन-फानन में मौके पर खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी और तहसीलदार से लेकर सारे अफसर पेट्रोल पंप पहुंच गए और उसे सील करवा दिया। खाद्य विभाग के अधिकारियों और तहसीलदारों से पूछा जाना चाहिए कि बारिश में उन्होंने अपने कार्यकाल में कितने पंपों का निरीक्षण किया? कितने पंपों को चेतावनी दी और कितनों को सील करने की कार्रवाई की।
सीएम साहब, आप बुरा मत मानिएगा लेकिन इन अधिकारियों से आपको ही यह सवाल करना चाहिए। हर बारिश में आपके प्रदेश की जनता यह मुसीबत झेलती है। इतना बड़ा अमला है, लेकिन इनमें से अधिकांश को सिर्फ मासिक चढ़ावे के अलावा कुछ नहीं सूझता। हां, अगर मासिक चढ़ावा नहीं आया तो फिर चमकाने की कार्रवाई करने जरूर जाते हैं।
आखिर यह किसकी जिम्मेदारी है कि महंगे दामों पर पेट्रोल-डीजल खरीद रही जनता को बिना मिलावट ईंधन मिले? यह कौन चेक करेगा कि पेट्रोल पंपों पर टैंकों को बारिश के पानी से बचाने की व्यवस्था की गई है या नहीं? अगर नहीं है तो उसे करवाने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या इसके लिए अलग से विभाग बनाना होगा?
पहले मिलावटी पेट्रोल-डीजल पर कार्रवाई होती भी थी, लेकिन अब तो वो भी नहीं होती। कहीं कार्रवाई हुई भी तो कुछ मासिक चढ़ावा तय कर फिर से खुली छूट दे दी जाती है। प्रदेश के अधिकांश पेट्रोल-पंप पर माप में गड़बड़ी होती है। इसके लिए भी सरकारी अमला है, लेकिन वह कभी पेट्रोल पंपों पर झांकने भी नहीं जाता। बस हर माह मानदेय मिलता रहना चाहिए।
सीएम साहब, यही मौका है। एक बार नकेल कस दीजिए। फिर आपका अमला भी सही हो जाएगा और पेट्रोल पंप वाले भी। नहीं तो यह सिलसिला जारी रहेगा और आपकी जनता परेशान होती रहेगी।
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