पुतिन ने जताई जेलेंस्की की वैधता पर शंका, युद्धविराम समझौते को लेकर रूस ने रखी कानूनी शर्तें.


पुतिन ने जताई जेलेंस्की की वैधता पर शंका, युद्धविराम समझौते को लेकर रूस ने रखी कानूनी शर्तें
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के साथ संभावित युद्धविराम समझौते पर बातचीत के लिए अपनी सैद्धांतिक सहमति जताई है, लेकिन उन्होंने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पुतिन का कहना है कि अगर कोई समझौता होता है, तो उस पर वैध और कानूनी रूप से अधिकृत प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
जेलेंस्की के राष्ट्रपति कार्यकाल पर उठे सवाल
पुतिन ने कहा कि जेलेंस्की का राष्ट्रपति कार्यकाल आधिकारिक रूप से समाप्त हो चुका है, और मार्शल लॉ लागू होने के कारण कोई नया राष्ट्रपति चुना नहीं गया है। जेलेंस्की का तर्क है कि वर्तमान युद्धकालीन परिस्थितियों में वे पद पर बने रहने के हकदार हैं, जबकि यूक्रेनी संविधान के अनुसार, ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की शक्तियाँ संसद अध्यक्ष को हस्तांतरित की जानी चाहिए।
"समझौते पर कौन करेगा हस्ताक्षर?": पुतिन
सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम के दौरान पुतिन ने कहा, अगर यूक्रेन सरकार अपने प्रतिनिधि के रूप में किसी को नामित करती है, तो आप अपनी मर्जी से जेलेंस्की को नियुक्त कर सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि समझौते जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ पर कौन हस्ताक्षर करेगा?”
उन्होंने आगे कहा कि युद्ध जैसे गंभीर मामलों में कानूनी वैधता प्राथमिकता होती है, न कि प्रचार। अगर आज कोई अवैध व्यक्ति दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है, तो कल मेरे उत्तराधिकारी कह सकते हैं कि यह समझौता अमान्य है और इसे रद्द कर दिया जाएगा।”
जेलेंस्की द्वारा वार्ता की लगातार पेशकश
दूसरी ओर, वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कई बार पुतिन से सीधी बातचीत की पेशकश की है, लेकिन रूस इस पर तभी राज़ी हो रहा है जब कानूनी वैधता सुनिश्चित हो।
पुतिन का तर्क: नियुक्त अधिकारी भी संदिग्ध
पुतिन ने यह भी कहा कि यूक्रेन के कई अधिकारियों को जेलेंस्की ने ही नियुक्त किया है, और यदि खुद राष्ट्रपति की वैधता संदेह के घेरे में है, तो उनके द्वारा नियुक्त अधिकारियों की साख पर भी सवाल उठना लाजमी है।
निष्कर्ष
रूस और यूक्रेन के बीच संभावित शांति वार्ता या युद्धविराम समझौते में सबसे बड़ी अड़चन यूक्रेन के नेतृत्व की कानूनी वैधता बनती जा रही है। पुतिन का स्पष्ट संकेत है कि जब तक यूक्रेन इस मुद्दे पर स्पष्ट स्थिति नहीं देता, तब तक किसी भी समझौते की कानूनी मान्यता और दीर्घकालिकता संदिग्ध रहेगी।