सी-21 बिजनेस पार्क की फर्जी एनओसी को वैध ठहराने की कोशिश में जुटे पिंटू छाबड़ा, आईडीए में पहुंचवा दी फोटो कॉपी, अब इसे ही मान्य कराने की तैयारी.


इंदौर। सी-21 बिजनेस पार्क की जमीन की रजिस्ट्री और नक्शे आदि में आईडीए की जो फर्जी एनओसी लगाई गई है, अब उसमें भी फर्जीवाड़ा शुरू हो गया है। आईडीए सीईओ आरपी अहिरवार यह मान चुके हैं कि एनओसी उनके यहां से जारी नहीं हुई है। इस संबंध में अपर कलेक्टर गौरव बैनल ने आईडीए को जो पत्र जारी किया था उसका जवाब भी अब तक नहीं भेजा गया है। इधर, पिंटू छाबड़ा इस फर्जी एनओसी को वैध ठहराने में पूरी तरह से जुट गए हैं।
उल्लेखनीय है कि तृष्णा गृह निर्माण संस्था की आवासीय उपयोग की भूमि पर फर्जी एनओसी के माध्यम से बने सी-21 बिजनेस पार्क की जांच चल रही है। कलेक्टर आशीष सिंह के संज्ञान में जब मामला आया तो उन्होंने अपर कलेक्टर गौरव बैनल को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद अपर कलेक्टर बैनल ने 13 अगस्त को इंदौर विकास प्राधिकरण के सीईओ को पत्र लिखकर एनओसी के संबंध में जानकारी मांगी है, लेकिन अब तक जवाब नहीं भेजा गया है।
पिंटू छाबड़ा ने बनाई फर्जीवाड़े की प्लानिंग
एनओसी के मामले में कलेक्टर को गंभीर देख मॉल माफिया पिंटू छाबड़ा आईडीए में सक्रिय हो गए। बताया जाता है कि उनका एक कर्मचारी जिसका नाम भी पिंटू है पांच-छह दिन से लगातार आईडीए के चक्कर काटता रहा। छाबड़ा के कर्मचारी ने आईडीए में कुछ फोटो कॉपी देते हुए कहा कि यह काम हमने ही कराया है। यह सही है। आपके पास नहीं मिल रही तो इसे ही रिकॉर्ड में रख लो। जब आईडीए के कर्मचारी नहीं माने तो सोमवार को अचानक से आईडीए के रिकॉर्ड विभाग के दो पूर्व कर्मचारी भी प्रगट हो गए। यह काम तब हुआ जब आईडीए के भू-अर्जन अधिकारी सुदीप मीना भोपाल गए थे।
कलेक्टर को अब दे सकते हैं गोलमोल जवाब
सूत्र बताते हैं कि पिंटू छाबड़ा की कोशिश है कि आईडीए की तरफ से कलेक्टर को गोलमोल जवाब भेजा जाए। अब आईडीए यह पत्र भेज सकता है कि हमारे पास फर्जी एनओसी से जुड़ी कुछ फोटो कॉपी मिली है। इस संबंध में आईडीए सीईओ आरपी अहिरवार पहले ही यह स्वीकार कर चुके हैं कि आईडीए की जिस एनओसी पर सी-21 बिजनेस पार्क की जमीन की सारी अनुमतियां ली गईं है, उसकी जानकारी आईडीए के रिकॉर्ड में नहीं है। वर्ष 1997, 1998 में जारी 1700 नंबर की एनओसी के आईडीए से जारी होने के प्रमाण नहीं मिले हैं। आवक-जावक रजिस्टर में भी इसकी एंट्री नहीं है। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आईडीए की तरफ से कलेक्टर को क्या जवाब भेजा जा रहा है।
एनओसी पर जिसके हस्ताक्षर वह भी परेशान
पांच में से चार एनओसी पर आईडीए के एक पूर्व अधिकारी रिपुसूदन शर्मा के हस्ताक्षर हैं, जबकि एक पर मूथा के हैं। जब यह जानकारी शर्मा को लगी तो वे आईडीए पहुंच गए और जानकारी मांगी लेकिन उन्हें टरका दिया गया। जब शर्मा से इस संबंध में पूछा गया तो कहा कि उन्होंने कोई ऐसी एनओसी जारी नहीं की है। ऐसा एक बार मम्मू पटेल के मामले में भी हो चुका है। जब उनके नाम से फर्जी एनओसी जारी कर हो गई थी, तब इस मामले में प्रकरण भी दर्ज हुआ था।
तीन भूमाफियाओं और आईडीए की मिलीभगत
इस पूरे मामले में इंदौर विकास प्राधिकरण तथा नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के कई अधिकारियों की भूमिका सामने आ रही है। सूत्र बताते हैं कि इस फर्जीवाड़े में पिंटू छाबड़ा और चुघ के साथ शहर के कुख्यात भूमाफियाओं चिराग शाह, चंपू अजमेरा और हैप्पी धवन की संलिप्तता का भी पता चला है। इन भूमाफियाओं पर पहले भी कई प्रकरण दर्ज हैं और ये जेल की हवा खाकर भी आ चुके हैं। इन्हीं भूमाफियाओं ने सभी विभागों की आंखों में धूल झोंककर गृह निर्माण संस्था की यह जमीन 26 लाख 74 हजार में खरीदकर करीब 11 करोड़ में बेबीलोन को बेच दी। खास बात यह कि तब बेबीलोन गुड़गांव की कंपनी थी, लेकिन भूमाफियाओं ने खेल इतना तगड़ा किया कि जल्द ही इस कंपनी पर पिंटू छाबड़ा और उनके परिवार का कब्जा हो गया।
कलेक्टर भी टटोल रहे आईडीए की नब्ज
कहा तो यह भी जा रहा है कि कलेक्टर आशीष सिंह भी इसी बहाने आईडीए अधिकारियों की नब्ज टटोल रहे हैं। उन्हें भी पता है कि एनओसी फर्जी है फिर भी आईडीए को पत्र भिजवाकर यह देखने का प्रयास किया जा रहा है कि आखिर इसका जवाब क्या मिलता है? इससे पहले भी कलेक्टर पिंटू छाबड़ा के ही एक मामले में संपदा अधिकारी मनीष श्रीवास्तव पर कार्रवाई कर चुके हैं। अब देखना यह है कि आईडीए के वरिष्ठ अधिकारी इस मामले में कलेक्टर की आंखों में धूल झोंक पाने में सफल हो पाते हैं या नहीं।