डीजीपी के एक आदेश पर भड़के जीतू पटवारी , कहा-सत्ता के घमंड में पुलिस का मनोबल तोड़ने का काम कर रही सरकार.


भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने डीजीपी कैलाश मकवाना के एक विभागीय आदेश पर विरोध जताया है। पटवारी ने कहा है कि पुलिस को जनप्रतिनिधियों के प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए कहा जाए न कि सत्ता के घमंड में पुलिस का मनोबल तोड़ने का काम कराया जाए।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के लिए डीजीपी कैलाश मकवाना ने एक ख़ास आदेश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि, किसी भी जनप्रतिनिधि के साथ शिष्ट व्यवहार में कमी नहीं होनी चाहिए। सांसद और विधायक मिलने आए तो पुलिस अफसरों को प्राथमिकता के आधार पर उनसे मुलाकात कर बात सुननी होगी और आने-जाने पर सैल्यूट मारना होगा। मकवाना ने 24 अप्रैल 2025 को यह आदेश जारी किया। इस निर्देश में पहले जारी किए गए 8 परिपत्रों का भी उल्लेख किया गया है, जो 23 जनवरी 2004, 18 मई 2007, 22 मार्च 2011, 24 अक्टूबर 2017, 19 जुलाई 2019, 11 दिसंबर 2019, 12 नवंबर 2021 और 4 अप्रैल 2022 को सरकार द्वारा जारी किए गए थे। ये सभी परिपत्र जनप्रतिनिधियों के प्रोटोकॉल और शिष्टाचार से संबंधित थे। अब एक बार फिर पुलिस मुख्यालय ने सभी थाना प्रभारियों से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक को सैल्यूट करने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं।
पटवारी ने इसे वर्दी का अपमान बताया
जीतू पटवारी ने इस आदेश को लोकतंत्र पर हमला और वर्दी का अपमान कहा है। उन्होंने अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि जिस दिन यह आदेश मंजूर किया गया, उसी दिन प्रदेश की वर्दी को राजनीतिक गुलामी में धकेल दिया गया। उन्होंने सरकार से इस तरह का आदेश वापस लेने की मांग की है। पटवारी ने कहा कि जिस समय राज्य की कानून व्यवस्था रसातल में पहुंच चुकी हो, पुलिस खुद अपराधियों के निशाने पर हो, ऐसे समय में राज्य सरकार पुलिस को न्याय दिलाने की बजाय सत्ता के प्रतीकों के सामने झुकने का फरमान सुना रही है। पटवारी ने भाजपा सरकार के निर्णय से असहमति जताते हुए कहा कि पुलिस का मनोबल पहले ही कमजोर है। वह एक ओर अपराधियों से लड़ रही है, तो दूसरी तरफ भाजपा नेताओं के दबाव से जूझ रही है। और अब यह आदेश उन्हें और भी कमजोर, झुका हुआ और भयभीत बना सकता है। पटवारी ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को प्रदेश का सबसे असफल गृहमंत्री बताते हुए फिर से यह मांग की है कि उन्हें किसी योग्य व्यक्ति को गृह मंत्रालय का दायित्व देना चाहिए। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्या यह निर्णय भाजपा नेताओं की मांग थी? यदि यह आदेश भाजपा नेताओं के दबाव में लिया गया है, तो यह स्पष्ट है कि भाजपा की मंशा पुलिस को स्वतंत्र नहीं, सत्ता का सेवक बनाना है।