बना के क्यों बिगाड़ा रे…बीआरटीएस की तरह मेट्रो को भी तो नहीं तोड़ दोगे, शहर के लोगों का जिम्मदारों से सवाल.


इंदौर। 12 साल पहले जिम्मेदारों ने इंदौर को एक सपना दिखाया था-बीआरटीएस। खूब प्रेजेंटेंशन हुए। रेलिंग के बीच सड़क पर भागती बस दिखाई गई। बीआरटीएस बना भी। एबी रोड पर जमकर ड्रामा हुआ। खूब अतिक्रमण हटाए गए। ताबड़तोड़ प्रोजेक्ट को फाइनल कर दिया गया, क्योंकि जेएनएनयूआरएम से पैसा लेना था। फिर क्या था 300 करोड़ रुपए फूंक दिए गए। अब उसे तोड़ने में जरा भी संकोच नहीं हो रहा।
क्या जिम्मेदार यह बता सकते हैं कि किस सर्वे के आधार पर बीआरटीएस की प्लानिंग की गई। और अगर सर्वे हुआ या फिजिबिलिटी रिपोर्ट बनाई गई तो यह पता नहीं था कि एलआईजी से नवलखा तक यह सड़क आधी ही बनने वाली है। क्या यह भी पता नहीं था कि शहर में बढ़ते ट्रैफिक का दबाव यह आधी सड़क कैसे झेल पाएगी? उस समय यह सब क्यों नहीं सोचा गया? इसलिए नहीं सोचा गया कि जिन लोगों ने यह सड़क बनवाई उनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं था। जनता का पैसा था, उसकी क्या परवाह। 300 करोड़ रुपए का कमीशन तो अपनी जेब में आ ही गया।
सिर्फ योजनाओं से पैसा लेना ही मकसद
जब भी केंद्र सरकार कोई नई योजना घोषित करती है तो उसके तहत पैसे लेने में राज्य सरकार और स्थानीय निकाय जुट जाते हैं। उस समय जैसे-तैसे डीपीआर तैयार की जाती है और बिना यह सोचे कि इस प्रोजेक्ट से शहर का कितना और कब तक भला होगा मंजूरी ले ली जाती है। योजना का पैसा आ जाए इसके लिए ताबड़तोड़ काम भी शुरू कर दिए जाते हैं। जब मेट्रो प्रोजेक्ट की बात शुरू हुई तो उसमें भी ऐसी ही जल्दबाजी की गई। वर्तमान में जिन इलाकों से मेट्रो जा रही है, उससे शहर की सड़कों से ट्रैफिक का दबाव कम होता नजर नहीं आ रहा। शहर के लोगों के मन में यह सवाल है कि कहीं कुछ साल बाद यही जिम्मेदार मेट्रो पर भी हथौड़ा न चलाने लगें।
पहले क्यों नहीं आया फ्लाईओवर का ध्यान
शहर के जिम्मेदारों ने एबी रोड पर तो सबसे ज्यादा प्रयोग किए हैं। पहले पलासिया ग्रेड सेपरेटर की योजना बनी। इसके बाद कई बार फ्लाईओवर की योजना बनी। भंवरकुआ चौराहा पर तो फ्लाईओवर शुरू भी हो गया है। सत्यसाई चौराहे और निरंजनपुर पर काम शुरू हो चुका है। एलआईजी, पलासिया चौराहा, गीता भवन चौराहा, शिवाजी वाटिका, नवलखा चौराहा पर भी बनाने की तैयारी है। क्या फ्लाईओवर का प्लान बीआरटीएस से पहले नहीं सोचा जा सकता था।
शहर के अधिकांश प्रोजेक्ट हुए हैं फेल
जिम्मेदारों की दूरदर्शिता का ही नतीजा है कि शहर के अधिकांश प्रोजेक्ट फेल होते जा रहे हैं। शहर की कान्ह और सरस्वती नदी में नाव चलाने का सपना दिखाकर 1200 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन नतीजा कुछ न निकला। नदी वैसे की वैसी गंदी है, लेकिन इस प्रोजेक्ट से जुड़े अफसरों-नेताओं की किस्मत बदल गई। इसी तरह सीवरेज का प्रोजेक्ट हो नाला टेपिंग का मामला हो या फिर सड़कों का, सब जगह असफलता ही मिली है।
मास्टर प्लान की सड़कें तक अधूरी
बाणगंगा ओवरब्रिज की कहानी तो आपको पता ही होगी। जिम्मदारों की दूरदर्शिता के कारण ही एक दूसरा पुल पास में ही बनाना पड़ा। नंदलालपुरा सब्जी मंडी तोड़कर फिर से बनाने के बाद भी उसकी हालत सबको पता है। शहर में मास्टर प्लान की कई सड़कें अधूरी है। जब पता था कि अतिक्रमण नहीं हट सकता और सड़क पूरी नहीं हो सकती तो फिर आधी बनाने से भी क्या मतलब था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण एमआर 9 है। इसी तरह रीजनल पार्क के सामने की सड़क है, जो आधी बनकर आज भी मुंह चिढ़ा रही है। शहर में ऐसे अनगिनत प्रोजेक्ट हैं, जो जिम्मेदारों की अदूरदर्शिता पर आंसू बहा रहे हैं।
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