सी-21 बिजनेस पार्क के मामले में पिंटू छाबड़ा को बचाने में जुटा आईडीए, फोटो कॉपी का हवाला देकर अपर कलेक्टर को भेजा जवाब .


इंदौर। तृष्णा गृह निर्माण संस्था की आवासीय उपयोग की भूमि पर फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से बने सी-21 बिजनेस पार्क की जांच शुरू तो हो गई, लेकिन आईडीए अब मॉल माफिया पिंटू छाबड़ा को बचाने में पूरी तरह से जुट गया है। कलेक्टर आशीष सिंह के संज्ञान में जब मामला आया तो उन्होंने अपर कलेक्टर गौरव बैनल को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंप दी। इसके बाद अपर कलेक्टर बैनल ने इंदौर विकास प्राधिकरण के सीईओ को पत्र लिखकर उस पत्र के संबंध में जानकारी मांगी, जिसके आधार पर जमीन का डायवर्शन कराया गया था। इसी पत्र का इस्तेमाल रजिस्ट्री में भी हुआ है। अपर कलेक्टर के पत्र के जवाब में आईडीए ने लिखा है कि इससे संबंधित कुछ फोटो कॉपी मिली है।
अपर कलेक्टर के पत्र के पहले आईडीए सीईओ आरपी अहिरवार यह कहते रहे हैं कि इस पत्र यानी फर्जी एनओसी से संबंधित कोई डाक्यूमेंट आईडीए के रिकॉर्ड में नहीं है। अपर कलेक्टर का पत्र आते ही अचानक फोटो कॉपी का प्रगट हो जाना भी आश्चर्यजनक है। सूत्र बताते हैं कि यह फोटो कॉपी मॉल माफिया पिंटू छाबड़ा ने ही अपने कर्मचारी के माध्यम से पहुंचाई है।
आईडीए के पत्र में फोटो कॉपी का हवाला, लेकिन एनओसी से इनकार
आईडीए के भू-अर्जन अधिकारी सुदीप मीना ने अपने पत्र में लिखा है कि पत्र क्रमांक 1700 दिनांक 21 दिसंबर 1998 के संबंध में प्राधिकारी के अभिलेखों का अवलोकन करवाया गया। अभिलेख में योजना क्रमांक 53 में जारी पत्रों की नस्ती की फोटो प्रति प्राप्त हुई। उस नस्ती में घनश्याम पिता सालीगराम को जारी पत्र की नोटशीट, आवेदक का आवेदन एवं जारी पत्र की फोटो प्रति प्राप्त हुई। यह पत्र ग्राम खजराना के सर्वे नंबर 28/2 रकबा 0.745 हेक्टर भूमि के संबंध में जारी किया गया है। पत्र द्वारा इंदौर विकास प्राधिकरण की घोषित योजना में भूमि समाविष्ट नहीं होने संबंधी जानकारी दी गई है। इसी पत्र के पैरा क्रमांक 02 में स्पष्ट है कि इस पत्र में नगर भूमि सीमा अधिनियम, 1976 की धारा 20 के अंतर्गत इंदौर विकास प्राधिकरण का अनापत्ति पत्र नही माना जाए। उक्त के संबंध में प्राधिकारी द्वारा 06 मई 2008 को पत्र क्रमांक 3187 एवं 31 मार्च 2021 को पत्र क्रमांक 1644 जारी की गई थी। प्राधिकारी का पत्र क्रमांक 1700 जिस नोटशीट आवेदन के आधार पर जावक किया गया है उसी नस्ती की फोटो प्रति उपलब्ध है।
क्या फोटो कॉपी को ही रिकॉर्ड मान लिया जाए
किसी भी सरकारी दफ्तर में जब कोई डाक्यूमेंट इश्यू होता है तो उसकी आवक-जावक रजिस्टर में एंट्री होती है। यह अनिवार्य प्रक्रिया है। जब आईडीए के रिकार्ड में ऐसी कोई एंट्री ही नहीं है तो वह फोटो कॉपी के आधार पर कलेक्टर को जवाब कैसे दे रहा है? बड़ा सवाल यह भी कि जिस फोटो कॉपी का जिक्र किया जा रहा है, उसका ओरिजनल डाक्यमेंट आईडीए के पास क्यों नहीं है? दूसरा सवाल अपर कलेक्टर बैनल ने आईडीए सीईओ को पत्र जारी किया था, लेकिन जबाव भू-अर्जन अधिकारी मीना दे रहे हैं।
सोसायटी की जमीन पर कमर्शियल निर्माण कैसे
जिस जमीन पर सी-21 बिजनेस पार्क बना है, वह तृष्णा गृह निर्माण संस्था की है। इस पर कमर्शियल निर्माण कैसे हो सकता है? इसके बावजूद यह हुआ और आईडीए मुंह पर ताला लगाए बैठा रहा? यह जमीन योजना क्रमांक 53 की, जिसे छोड़ने के लिए भी सरकार ने अभी परमिशन नहीं दी है। हाल ही में योजना क्रमांक 94 की जमीन के मामले में एसीएस संजय दुबे ने आईडीए को फटकार लगाई थी। दुबे ने आईडीओ को भेजे पत्र में स्पष्ट कहा था कि उसे जमीन छोड़ने का कोई अधिकार नहीं है।
सिद्ध के कारण अब भी भटक रहे न्याय नगर वाले
तृष्णा गृह निर्माण संस्था की जो जमीन राजेश सिद्ध ने बेची है, वह न्याय नगर के मामले में आरोपी है। प्रशासन कई बार इस मुद्दे पर बैठक बुला चुका है, लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकला। न्याय नगर की जमीन पर सिद्ध की गिद्ध दृष्टि का ऐसा प्रभाव है कि अब तक रहवासी अपने प्लॉट के लिए भटक रहे हैं, लेकिन उसी सिद्ध की बेची जमीन पर छाबड़ा का बिजनेस पार्क लोगों को मुंह चिढ़ा रहा है।
होटल के आवेदन पर कमर्शियल बिल्डिंग
इस पूरे मामले में पिंटू छाबड़ा के साथ नगर तथा ग्राम निवेश विभाग तथा अन्य विभागों की मिलीभगत उजागर हुई है। बेबीलॉन द्वारा टीएनसीपी में उक्त भूमि पर आवासीय होटल बनाने हेतु आवेदन किया गया था। टीएनसीपी के आवक-जावक रजिस्टर में भी इसका उल्लेख है। इसके बावजूद कमेटी की बैठक होने के बाद अचानक से आवासीय उपयोग की जमीन पर कमर्शियल कॉरपोरेट ऑफिस बनाने हेतु नक्शे की स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है। अधिकारी द्वारा नक्शे की स्वीकृति, विकास योजना 2021 के तहत सारणी क्रमांक 6.22 बैंक/एटीएम के समान होने की आधार पर दी गई है। इसके विपरित वास्तव में उक्त नक्शे में शोरूम, कान्फ्रेंस हॉल आदि बना हुआ है। यह मास्टर प्लान 2021 के तहत आवासीय स्थल पर बनाना प्रतिबंधित है, लेकिन पिंटू छाबड़ा द्वारा अधिकारी से सांठ गांठ कर अवैधानिक रूप से अनुमति ले ली गई। आज भी कलेक्टर के भू-रिकॉर्ड में आज भी यह प्लॉट आवासीय प्रयोजन का है। वर्तमान में इस बिल्डिंग में कॉल सेंटर आदि अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं।
हनी-टनी की जमीन को लेकर केस
बताया जाता है कि सी-21 बिजनेस पार्क की जमीन में हनी-टनी भी पार्टनर थे। बाद में पिंटू ने सी-21 बिजनेस पार्क से लगी हुई पुष्प विहार की कुछ जमीनें हनी-टनी को दिलवा दीं, जिसको लेकर पुलिस ने केस भी दर्ज किया था। हनी-टनी ने इस पर लोन भी ले लिया था, जिसको लेकर बैंक अधिकारियों पर कार्रवाई भी हुई थी। ताज्जुब की बात तो यह है कि हनी-टनी तो फंस गए, लेकिन पिंटू छाबड़ा के खिलाफ कुछ नहीं हुआ।
सहकारिता विभाग से कोई अनुमति नहीं ली
इस पूरे मामले में ताज्जुब तो इस बात का है कि तृष्णा गृह निर्माण संस्था की इस जमीन को खरीदने-बेचने में सहकारिता विभाग की कोई अनुमति नहीं ली गई है। जबकि, सरकार ने इस संबंध में स्पष्ट आदेश दिए थे कि बिना अनुमति सहकारी संस्था की जमीन की खरीदी-बिक्री नहीं हो सकती। ऐसे में चुघ हाउसिंग ने बिना सहकारिता विभाग के यह जमीन कैसे खरीदी-बेची? खास बात यह कि सरकार ने जब भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान चलाया था, तो ऐसी सारी अनुमतियां निरस्त कर भी कार्रवाई की गई लेकिन यहां तो बिना अनुमति के ही पूरा खेल हो गया। इसी दौरान भूमाफिया चंपू अजमेरा, चिराग शाह और हैप्पी धवन पर भी कार्रवाई हुई थी जो बेबीलोन की जमीन के सौदे में भी शामिल थे। इन सबके बावजूद सिर्फ पिंटू छाबड़ा और चुघ हाउसिंग पर किसी भी विभाग की नजर नहीं पड़ी।