आज ठहाका मार हंस रही थीं राजवाड़ा की सड़कें, सुबह-सुबह नई झाड़ू के साथ नए ग्लव्स पहने कुछ ‘एक्टर’ जो आए थे.


हर साल गोगा नवमी पर शहर के सफाईकर्मियों का अवकाश रहता है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने हम भी स्वच्छाग्रही अभियान का ऐलान किया था। मैंने सोचा अब जबकि महापौर ने कहा है तो सारे नेता, पार्षद, भाजपा के मंडल-कमंडल और बूथधारी हाथों में झाड़ू लिए सड़कों पर उतर ही आएंगे। अपने शहर की एक परंपरा है हर इवेंट की शुरुआत राजवाड़ा से होती है। चाहे भारत क्रिकेट मैच जीते या कोई अन्य खुशी का मौका हो हम राजवाड़ा ही जाते हैं। विरोध भी करना हो तो राजवाड़ा ही ठीक रहता है। मैंने सोचा अपन भी राजवाड़ा ही चलते हैं।
मैं राजवाड़ा पहुंचा। देखा सड़कें चकाचक थीं। नेता नगरी गायब थी। इसलिए राजवाड़ा के सामने की सड़क से ही पूछ बैठा-आज तो सफाईकर्मियों की छुट्टी है, फिर इतनी सफाई कैसे?
सड़क ने कहा-भिया, आज यहां फिल्म की शूटिंग हो रही थी। इसलिए सफाई हो गई, वैसे भी हमारी सफाई तो रात में ही हो जाती है।
मैंने पूछा-कौन सी फिल्म की शूटिंग?
सड़क ने कहा-पता नहीं। यहां तो फिल्मों की शूटिंग चलती रहती है। यह तो आपको पता होगा।
मैंने कहा-किसी को तो पहचानती होगी। सदियों से यहीं पड़ी हो। बाहर के एक्टर थे या अपने शहर के यह तो बता सकती हो?
सड़क ने कहा-भिया, थे तो अपने ही यहां के। कई बार माता अहिल्या को माला पहनाते उन्हें देखा है। सब नए झक कपड़े पहने हाथों में नए ग्लव्स पहने नई झाड़ू के साथ शॉट दे रहे थे।
मैंने कहा-तुम सड़क की सड़क ही रहोगी। वे एक्टर नहीं, नेता लोग थे। आज तुम्हारी सफाई करने आए थे।
सड़क ने कहा-भिया, सफाई करता तो मुझे कोई दिखा नहीं। सब एक्टिंग जरूर कर रहे थे और बहुत सारे कैमरे चल रहे थे। मुझे लगा फिल्म की शूटिंग हो रही है।
मैंने कहा-एक तो तुम पर हमारे नेताओं ने एहसान किया और ऊपर से तुम उनकी हंसी उड़ा रही हो।
सड़क ने कहा-भिया एक दिन झाड़ू उठाकर फोटो खिंचवा लेने से क्या मुझ पर एहसान कर दिया? हम तो राजवाड़ा की सड़कें हैं, हम तो वैसे भी साफ ही रहती हैं। अगर एहसान करना ही था तो वार्डों में गलियों की सड़कों को जाकर साफ करते?
मैंने कहा-ऐसा नहीं है। महापौर ने आज हम भी स्वच्छाग्रही अभियान चलाया था। इंदौर के महापौर हैं। सारे नेताओं के साथ सारे नागरिक भी उनकी सुनते हैं। मेरा दावा है कि पूरे शहर में सफाई हुई होगी।
सड़क ने कहा-मुझे भरोसा ही नहीं है। अब मैं तो चलकर जा नहीं सकती, आप खुद ही किसी भी वार्ड की गलियों में हो आओ। हां, इतनी जानकारी मुझे मिली है कि इसी तरह की शूटिंग कुछ और प्रमुख सड़कों पर भी हुई है।
मैंने कहा-चलो माना कि पूरा शहर साफ नहीं हुआ होगा, कुछ तो हुआ है। लोग जागरूक तो हुए होंगे?
सड़क ने कहा-हमारा शहर सफाई को लेकर पहले से ही जागरूक है। जहां तक आज के अभियान की बात है, इसके लिए पहले से ही तैयारी करनी थी। सारे मंडल-कमंडल-बूथ-वार्ड के नेताओं को सड़क पर उतारना था। उनके साथ चेले-चपाटे भी आ जाते। आम लोग भी साथ हो लेते और तब आधा शहर तो साफ हो ही जाता।
मैंने कहा-चलो कुछ तो हुआ। अगले साल कुछ इससे अच्छा होगा। हुआ तो तुम्हारे हित के लिए ही?
सड़क ने कहा-अब मेरे हित की बात मत करना। अगर नेताओं को हमारी इतनी ही चिन्ता होती तो एक बार बनाकर बार-बार हमारी छाती पर बुलडोजर नहीं चलाते। कभी ड्रेनेज लाइन, तो कभी पानी की लाइन के नाम पर हमारा सत्यानाश कर देते हो। इसके बाद लोग गड्ढे में गिरकर हमें ही गाली देते हैं। जरा, शहर के लोगों से पूछो कि हमारा बुरा हाल किसके कारण हुआ। अब दिमाग खराब मत करो और यहां से दफा हो जाए।
इसके आगे में भी क्या कहता। कलटी मारने में ही भलाई थी।