जैन समाज के वैवाहिक मामलों का निपटारा अब हिंदू विवाह अधिनियम के तहत होगा, हाईकोर्ट इंदौर का फैसला.


इंदौर। जैन समाज से जुड़े वैवाहिक मामलों की सुनवाई और निराकरण हिंदू विवाह अधिनियम के तहत होगा। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने कुटुंब न्यायालय के एक फैसले को निरस्त कर दिया। कुटुंब न्यायालय ने एक जैन दंपति द्वारा तलाक के लिए प्रस्तुत याचिका को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि केंद्र सरकार द्वारा जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित किया गया है। इसकी सुनवाई हिंदू विवाह अधिनियम के तहत नहीं हो सकती है।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब जैन समाज के वैवाहिक मामले हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही सुने जाएंगे। निचली कोर्ट ने इस प्रकरण में यह निष्कर्ष निकाला कि विवाह अधिनियम के प्रावधान जैन समुदाय पर लागू नहीं होते, यह गंभीर त्रुटि है। जैन समुदाय को 10 वर्ष पहले अल्पसंख्यक दर्जा मिला हो, लेकिन उन्हें किसी भी कानून के तहत आवेदन करने का पूरा अधिकार है।
हाईकोर्ट ने कुटुंब न्यायालय का फैसला किया निरस्त
कुटुंब न्यायालय के फैसले को नीतेश सेठी ने चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट में संविधान में हिंदू की परिभाषा का हवाला देते हुए कहा गया कि उसमें जैन भी शामिल है। उत्तराधिकारी अधिनियम में भी जैन धर्मावलंबियों को शामिल किया गया है। अल्पसंख्यकों में बौद्ध, जैन, सिख शामिल हैं और इन सभी के वैवाहिक विवाद हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही निराकृत होते रहे हैं, इसलिए हिंदू अधिनियम के तहत ही जैन समाज के वैवाहिक मामलों की सुनवाई होना चाहिए। हाईकोर्ट ने कुटुंब न्यायालय के फैसले को निरस्त किया और आदेश दिया कि जैन समाज से जुड़े मामलों की सुनवाई हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत हो।
28 मामले कर दिए थे खारिज
हाल ही में फैमिली कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट में अल्पसंख्यक वर्ग के पक्षकारों को सुनवाई का हक नहीं होने के मुद्दे पर एक नहीं, बल्कि 28 परिवाद एक साथ खारिज कर दिए थे। इनमें ऐसे भी मामले थे, जिनमें दंपत्ति ने आपसी सहमति से अलग होने के लिए अर्जी दायर की थी। ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के भी स्पष्ट आदेश हैं कि साथ रहने की गुंजाइश न हो तो तत्काल ऐसे परिवाद को स्वीकार कर लेना चाहिए। हाई कोर्ट में जिन पक्षकारों ने फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है वह भी स्वेच्छा से अलग होना चाहते हैं ताकि नए सिरे से अपनी अपनी शुरुआत कर सकें। फैमिली कोर्ट द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग के मुद्दे पर जिन परिवादों को खारिज किया गया था वह सभी मामले अब हाई कोर्ट पहुंच रहे थे। 10 पक्षकारों ने हाई कोर्ट ने अर्जी दायर की थी।