अब तो दो वर्ष हो गए…कहां खो गए हो… शहर याद कर रहा है मित्र…लौट आओ….


प्रिय मित्र,
यह संबोधन इसलिए कि आप इंदौर के मित्र हो और आपने इसी मित्रता के नारे के साथ चुनाव जीता था। लोगों को भी एक शहर हितैषी पढ़े-लिखे, समझदार मित्र की तलाश थी, सो बंपर वोट से आप जीत भी गए।
आप शायद भूल गए होंगे, लेकिन लोगों को दो वर्ष पहले जुलाई का वह महीना याद है जब आपको महापौर पद के लिए चुना गया था। हाईकोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता की कुर्सी से उतरकर आप अचानक नारे लगाते लोगों के कंधों पर बैठ गए थे। क्या आपने अपने दो वर्ष के कार्यकाल के बारे में कभी सोचा है? शायद नहीं। सोच रहे होंगे कि अभी तो काफी समय बचा है…
मित्र, भले ही आप मुझे शत्रु मान लेना लेकिन एक बात साफ है कि शहर से मित्रता निभाने में आप बिल्कुल ही असफल साबित हुए हो। अगर सच्चाई पता करनी हो तो एक बार वेश बदलकर शहर में निकल कर देख लो।
मित्र, आपने लोगों की उम्मीदों पर सिर्फ पानी ही नहीं फेरा, बल्कि उसे बरसाती गड्ढे में डूबा दिया। अब देखो ना आपके राज में कोई भी साबूत सड़क बची नहीं, जो है वह तालाब का मजा दे रही है। आज ही हुई तीन इंच बारिश में पूरा शहर तालाब बना बैठा है, वह भी ऐसा तालाब जिसके गड्ढों की गहराई का पता ही नहीं। बेचारे विजय नगर थाने वाले एफआईआर दर्ज करने की बजाए थाने से पानी निकालने में जुटे रहे। आप चाहो तो अपने पुराने नेताओं के वादों को पूरा करते हुए शहर में नाव चलवा सकते हो।
शहर को लेकर कोई भी फैसला होता है, आप कहां छुप जाते हो मित्र? किस बात का डर है? क्यों किसी राजनीतिक ‘वटवृक्ष’ के नीचे अपना पौधा लगाते फिर रहे हो।
अरे, जनता ने आपको चुना है। वह भी इसलिए कि आप किसी भाई-ताई-साईं की राजनीति में नहीं हो। आप पढ़े-लिखे, सुलझे हुए युवा नेता हो। अगर आप सफल नहीं हुए तो आपके जैसे सैकड़ों युवा जो राजनीति में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उनका भविष्य भी अधर में लटक जाएगा।
यह मैं ऐसे ही नहीं कह रहा। अब तक का आपका ही इतिहास बता रहा है। नगर निगम में घोटाला हो-मित्र चुप। पर्यावरण की बात हो-मित्र चुप। सफाई में कोताही हो-मित्र चुप। बारिश में शहर बह जाए-मित्र चुप। नगर निगम को नेता-अफसर जीमने की कोशिश करें-मित्र चुप।
सच कहता हूं। आपकी यह चुप्पी किसी दिन आपके राजनीतिक भविष्य का रास्ता ही ब्लॉक कर देगी। अगर आपने ठान लिया है कि नगर निगम की महापौर की कुर्सी से फिर हाईकोर्ट के पास वाली बिल्डिंग के चेंबर में ही बैठना है तो फिर ठीक है। अगर ऐसा नहीं तो मैदान में उतरो मित्र। वह बिना किसी गुणा-भाग के। सिर्फ शहर का सोचो, अपने राजनीतिक भविष्य का सोचो और उन लोगों का तो जरूर सोचो जिन्होंने मित्र समझकर आपको वोट दिया है…
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