‘कान्ह-सरस्वती’ की नगरी में ‘गंगा-जमुना’ का आनंद, फिर भी नगर निगम को कोस रहे लोग!.


बारिश हर साल होती है। शहर की सड़कें भी डूबती हैं। बस्तियों व घरों में पानी भी भरता है, लेकिन इस बार लोगों ने कुछ ज्यादा ही कर दी। बेचारे नगर निगम वालों की बाट लगा दी। और तो और सीएम साहब तक भी शिकायत पहुंचा दी। सीएम साहब जो कि इंदौर के प्रभारी भी हैं, उन्हें भी बुरा लगा और उन्होंने अधिकारियों को हिदायत दे डाली, अब अगर सड़कों पर पानी भरा तो…
इसी पानी कांड के दौरान मैं भी अपनी चालू बंद होती बाइक पर सवार तैरता घूम रहा था। पलसीकर चौराहे से लेकर विजय नगर तक के सफर में जो आनंद आया कि बयां नहीं कर सकता। लगा कि बेकार ही हम कान्ह और सरस्वती की सफाई को लेकर नगर निगम पर तोहमत लगाते हैं। यह कहते हैं कि करोड़ों रुपए खर्च के बाद भी शहर की दोनों नदियां अभी भी नाला हैं। मान लो अगर दोनों नदियां साफ हो गईं होतीं और इनमें पानी का बहाव गंगा-जमुना जैसा हो गया होता तो क्या होता? अरे वही होता ना जो हरिद्वार, ऋषिकेश, बनारस, इलाहाबाद, दिल्ली, बिहार, नेपाल आदि में होता है। और ऐसे में हम जिस कृष्णपुरा छत्री के सामने की सड़क को तालाब कह कोस रहे हैं, वह तो कहीं होती ही नहीं और हम शायद छत्री की मुंडेर पर शरण लिए बचाव की गुहार लगा रहे होते।
सड़कों पर तैरता सा मैं भी पानी को खूब कोस रहा था। तभी पानी को भी गुस्सा आया और मैं बाइक सहित छपाक…। थोड़ी देर बाद उठा। हाथ-पांव टटोले, सही-सलामत दिखे तो पानी की ‘सबकुछ’ उतार दी। तभी पानी से आवाज आई मुझे क्यों कोस रहा है?
मैंने पूछा-तब किसे कोसूं। तेरे कारण ही तो उतर गया है ‘हमारे स्वच्छ और सुंदर शहर का पानी।‘
पानी ने कहा-नर्मदा मैया की कृपा के बाद भी जब पूरे साल टैंकर के भरोसे रहते हो तो मुझे ही तो कोसते हो। अब जब एक ही दिन में छह इंच की कृपा कर दी तो भी कोस रहे हो।
मैंने कहा-ऐसी कृपा का क्या फायदा, जिससे पूरा शहर हलाकान हो जाए?
पानी ने कहा-मैं तो पानी हूं। मुझे यह थोड़े ही पता कि तुमने किस सड़क पर गड्ढा खोद रखा है। कहां गड्ढा खोदने के बाद भी गिट्टी-सीमेंट नहीं भरी। और कहां शहर को सुंदर बनाने के लिए ताबड़तोड़ करोड़ों का काम करा रखा है। कहां-कहां फाइलों में फर्जी ड्रेनेज लाइन डाल रखा है। मेरा काम तो पानी की तरह साफ है।
मैंने कहा-जब शहर का हाल तुमसे छुपा नहीं तो थोड़ी रहम ही कर देते। बेचारे महापौर, नगर निगम कर्मियों, पार्षदों पर ही तरस खा लेते?
पानी ने कहा-मैं और रहम। संभव ही नहीं। मैं किसी भाई-ताई के चक्कर में नहीं पड़ता। कोई मंत्री-संत्री-यंत्री मुझे नहीं चमका सकता।
मैंने कहा-ऐसी अकड़ ठीक नहीं।
पानी ने कहा-अब विजय नगर थाने को ही देख लो। शहर की बड़ी अकड़ वाला थाना है। टीआई साहब के कमरे का हाल देखो। साहब तो साहब पूरे थाने के स्टाफ की अकड़ एक झटके में निकाल दी। एफआईआर तो कर नहीं सकते, डंडा भी नहीं चला सकते। अब सब बाल्टी लेकर मुझे भगाने में जुटे हैं।
मैंने हाथ जोड़े और एक ही प्रार्थना की, जब तुम्हारे में इतनी ताकत है तो एक बार सबका पानी क्यों नहीं उतार देते...चेहरे साफ दिखने लगें तो शायद इस शहर का भला हो जाए…
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