26 जनवरी पर विशेष : भारतीय गणतंत्र की उपलब्धियां एवं चुनौतियां .


आज भारत राष्ट्र अपना 76 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। आज ही के दिन 26 जनवरी 1950 को भारत राष्ट्र ने संसार को एक नए गणराज्य के गठन की सूचना दी। अपने संविधान को अमल में लाया। उस संविधान की भावना के अनुरुप ही भारत एक प्रभुतासंपन्न गणतंत्रात्मक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी राज्य बना। देश में संविधान का शासन है और संसद सर्वोच्च है। देश की आजादी के उपरांत हमारा उद्देश्य एक शक्तिशाली, स्वतंत्र और जनतांत्रिक भारत का निर्माण करना था। ऐसा भारत जिसमें सभी नागरिकों को विकास और सेवा का समान अवसर मिले। ऐसा भारत जिसमें जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, छुआछुत, हठधर्मिता और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के लिए स्थान न हो। इसीलिए हमारे संविधानविदों ने संविधान गढ़ते वक्त दुनिया के बेहतरीन संविधानों से अच्छे प्रावधानों को ग्रहण किया। मसलन ब्रिटेन से संसदीय प्रणाली ग्रहण की। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से मौलिक अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय कनाडा के संविधान से भारत का राज्यों का संघ होना, आयरलैंड के संविधान से राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांत, आस्टेªलिया के संविधान से समवर्ती सूची, जर्मनी के संविधान से राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों को स्रोत तथा दक्षिण अफ्रीका के संविधान से संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया जैसी महत्वपूर्ण बातें ग्रहण की। गौर करें तो भारतीय संविधान की यह सभी विशेषताएं भारतीय संविधान को उदारवादी और विकासवादी बनाती हैं।
भारतीय संविधान भारत में सभी नागरिकों को ढ़ेरों अधिकार दे रखा है जिससे उन्हें अपने व्यक्तित्व को संवारने की आजादी मिली हुई है। भारतीय संविधान में जाति, धर्म, रंग, लिंग, कुल, गरीब व अमीर आदि के आधार सभी समान है। जनमत पर आधारित भारतीय संविधान ने संसदीय शासन प्रणाली में सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान किया है। सत्ता प्राप्ति के लिए खुलकर प्रतियोगिता होती है और लोगों को चुनाव में वोट के द्वारा अयोग्य शासकों को हटाने का मौका मिलता है। भारतीय संविधान ने राज्य के लोगों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों में अनुचित हस्तक्षेप करने का अधिकार केंद्र या राज्य सरकारों को नहीं दिया है। संविधान के तहत राजनीतिक दल सभाओं, भाषणों, समाचारपत्रों, पत्रिकाओं तथा अन्य संचार माध्यमों से जनता को अपनी नीतियों और सिद्धांतों से अवगत कराते हैं। विरोधी दल संसद में मंत्रियों से प्रश्न पूछकर, कामरोको प्रस्ताव रखकर तथा वाद-विवाद द्वारा सरकार के भूलों को प्रकाश में लाते हैं। सरकार की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखते हुए उसकी नीतियों और कार्यों की आलोचना करते हैं। भारतीय संविधान के मुताबिक संघीय शासन की स्थापना के बावजूद भी प्रत्येक नागरिक को इकहरी या एकल नागरिकता प्राप्त है और इससे राष्ट्र की भावनात्मक एकता की पुष्टि होती है। भारत का प्रत्येक नागरिक चाहे वह देश के किसी भी भाग में रहे भारत का ही नागरिक है। यहां संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह राज्यों की कोई पृथक नागरिकता नहीं है। धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने तथा धन का प्रबंध करने का अधिकार है। संविधान ने सुनिश्चित किया है कि शिक्षण-संस्थाओं को सहायता देते समय राज्य किसी शिक्षण संस्था के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करता है कि वह संस्था धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है। इसी तरह भारतीय नागरिकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार हासिल है।
इस व्यवस्था ने भारतीय नागरिकों को शासन-प्रशासन से सीधे सवाल-जवाब करने की नई लोकतांत्रिक धारणा को जन्म दी है। इस व्यवस्था से सरकारी कामकाज में सुशासन, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ा है जिससे आर्थिक विकास को तीव्र करने, लोकतंत्र की गुणवत्ता बढ़ाने और भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है। सूचना के अधिकार से सत्ता की निरंकुशता पर भी अंकुश लगा है। भारतीय संविधान ने भारत के स्वरुप को एक मृदु राज्य में तब्दील कर दिया है। उसी का नतीजा है कि भारत के प्रत्येक राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ है। इन आयोगों को विधिवत सुनवाई करने तथा दंड देने का अधिकार प्राप्त है। एक मृदृ राज्य के रुप में तब्दील हो जाने के कारण ही सत्ता का विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्तर पर स्वशासन की व्यवस्था सुनिश्चित हुआ है। निश्चित रुप से मृदु राज्य के रुप में तब्दील होने से भारत का तीव्र गति से विकास हो रहा है और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता भी बनी हुई है। आज भारत ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है। उपभोक्ता खर्च में आई तेजी, घरेलू स्तर पर बढ़ी मांग और सेवा क्षेत्र में लगातार विस्तार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नए मुकाम पर पहुंचा दिया है।
आज भारत जी-20 देशों में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है। आज भारत में सबसे ज्यादा स्मार्टफोन डेटा उपभोक्ता हैं। सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। भारत तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। इनोवशन इंडेक्स में भारत की रैंकिंग लगातार सुधर रही है। देश में यनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस यानी यूपीआइ के जरिए लेन-देन बढ़ा है। एसबीआई के इकानाॅमिक रिसर्च डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक यूपीआइ लेन-देन की मात्रा वित्त वर्ष 2024 में 247 लाख करोड़ के पार पहुंच गयी है। विनिर्माण क्षेत्र में ग्रोथ से भारत के निर्यात में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। 2024 में 67.79 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का समान विदेश निर्यात किया गया। बीते दस वर्षों में 120 अरब डाॅलर से ज्यादा की नई कंपनियां अस्तित्व में आई हैं। आज इनका मूल्य 15 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। यह संकेत भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था की संभावना को पुख्ता करता है। भारत गरीबी से निपटने के लक्ष्य को तेजी से हासिल कर रहा है।
गत वर्ष पहले नीति आयोग के डिस्कशन पेपर ‘मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इन इंडिया सिंस की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि 2013-14 से 2022-23 के बीच 24.82 करोड़ लोग मल्टीडाइमेंशनल गरीबी से बाहर निकले हैं। ऐसा इसलिए संभव हुआ है कि सरकार ने कल्याणाकारी योजनाओं के लीकेज को बंद करने में सफलता हासिल की है। अर्थात् कल्याणाकारी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों तक पहुंचा है। केंद्र सरकार भूख की गरीबी को खत्म करने के लिए पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना संचालित कर रही है जिसके जरिए देश के तकरीबन 80 करोड़ लोगों को पांच किलोग्राम खाद्यान्न दिया जा रहा है। केंद्र सरकार की उज्जवला योजना के अंतर्गत तकरीबन दस करोड़ लोगों को लाभ पहुंचा है। इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 4 करोड़ से अधिक लोगों को आवास दिया जा चुका है। साढ़े पांच करोड़ से अधिक लोग आयुष्मान कार्ड हासिल कर चुके हैं जिसके जरिए उन्हें उच्चकोटि के अस्पतालों में निःशुल्क इलाज मिल रहा है। जनधन खाताधारकों की संख्या 53.1 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जिसमें 80 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है। इन खातों में 2.3 लाख करोड़ से अधिक की धनराशि जमा है और 35 करोड़ रुपे कार्ड जारी किया गया है। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले इसके लिए केंद्र सरकार ने देश का भाग्य संरचनात्मक रुप से कृषि से जोड़ दिया है।
सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना करते समय ए2$ एफएल फॉर्मूला को अपनाया है तथा साथ ही कृषि उत्पादन के नकद व अन्य सभी खर्चों समेत किसान परिवार के श्रम के मूल्य को भी जोड़ दिया है। मजदूरी, बैलों अथवा मशीनों पर आने वाला खर्च, पट्टे पर ली गयी जमीन का किराया, बीज, खाद, तथा सिचाई खर्च भी इसमें जोड़ दिया है। इससे किसानों को उनकी उपज का सार्थक मूल्य मिलना शुरु हो गया है। लेकिन जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती अभी भी बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में जनसंख्या बढ़ने की गति धीमी है वहीं भारत में साल भर में आबादी 1.56 प्रतिशत बढ़ी है। विगत पांच दशकों में जनसंख्या में निरंतर तीव्र वृद्धि के कारण जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उत्पन हो गयी है। इन बहुतेरे समस्याओं के बाद भी इन सात दशकों में ढ़ेर सारी उपलब्धियां अर्जित की है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं।
Article By :
अरविंद जयतिलक, वरिष्ठ पत्रकार
संविधान की भावना के अनुरुप ही भारत एक प्रभुतासंपन्न गणतंत्रात्मक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी राज्य बना। देश में संविधान का शासन है और संसद सर्वोच्च है। देश की आजादी के उपरांत हमारा उद्देश्य एक शक्तिशाली, स्वतंत्र और जनतांत्रिक भारत का निर्माण करना था।
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