प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल एमवाय की साख तार-तार कर गए चूहे.


प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एमवाय इन दिनों पूरे देश की मीडिया में छाया हुआ है। इसका कारण कोई बड़ी रिसर्च या कोई बड़ा ऑपरेशन या इलाज की नई तकनीक नहीं, बल्कि चूहे हैं। इन चूहों ने दो नवजात बच्चों को कुतर लिया और दोनों की मौत हो गई।
एमवाय अस्पताल पर चूहों की कृपा हमेशा से रही है। इंदौर के पुराने लोगों को याद होगा। 1994 में जब गुजरात के सूरत में प्लेग फैला था, इंदौर भी आशंकित था। उस समय इंदौर में निजी अस्पताल कम थे और लोग अगर बीमार पड़ते तो कहां जाते, क्योंकि एमवाय अस्पताल तो खुद चूहों के आतंक से त्रस्त था। तब चूहों को भगाने के लिए ऑपरेशन कायाकल्प चला था। 16 दिन के इस अभियान में चूहे कितने भागे इसका तो पता नहीं चला, लेकिन कई लोगों विशेषकर पेस्ट कंट्रोल कंपनी की जेब जरूर चूहों के पेट जितनी मोटी हो गई थी। इसके बाद 2014 में भी एक अभियान चला था, इसमें भी पांच हजार चूहों को मारने का दावा किया गया था।
खैर, इसके बाद चूहों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। एमवाय अस्पताल में उनका डेरा स्थायी तौर पर जमा रहा। ऐसा नहीं है कि चूहों को भगाने पर एमवाय अस्पताल अभी कोई पैसे नहीं खर्च करता। इसके लिए बकायदा एक कंपनी से अनुबंध भी है, लेकिन वह क्या करती है इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। रुटीन में बिल पास होते रहते हैं और चूहों अपने बिलों की संख्या भी बढ़ाते रहते हैं।
ताज्जुब तो इस बात का है कि जब आप नवजात बच्चों के वार्ड में भी सुरक्षा के इतने इंतजाम नहीं कर पाएं कि उनकी जान बचाई जा सके। दो बच्चों की मौत सामान्य घटना नहीं है। जरा, सोचिए उन दोनों बच्चों के मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी। आखिर आदमी बीमार होगा तो अस्पताल जाएगा और परेशान होगा तो थाने, लेकिन हमारे देश में इन दोनों स्थानों से ज्यादा असुरक्षित जगह कोई नहीं है।
विडंबना यह कि बच्चों की मौत के बाद एमवाय अधीक्षक डॉ.अशोक यादव ने बयान दिया कि दोनों बच्चे शुरू से ही गंभीर थे और वेंटिलेटर पर थे। मौत इलाज के दौरान हुई है। चूहा काटने से उनकी मौत का कोई संबंध नहीं है।
मामले की जांच के साथ लीपापोती शुरू होनी ही थी, जो हो चुकी है। चूहों के साथ जिम्मेदार भी बच जाएंगे, लेकिन उस साख का क्यो होगा जो तार-तार हो चुका है।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो आपके डॉक्टर होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है। अभी भी समय है संभल जाएं, गंभीर हो जाएं।