अगर सीएम ने नहीं लगाया होता सफाई पर जोर, इंदौर में नहीं होता ‘तमगे’ का शोर.


स्वच्छता में लगातार आठवीं बार देश में नंबर वन आकर इंदौर ने बता दिया है कि हम ही नंबर वन रहेंगे। चाहे कोई भी शहर हो, कितनी भी कैटेगरी बन जाए, लेकिन हम से आगे नहीं निकल सकता। क्योंकि, कोई भी शहर सफाई तो मशीनों से भी कर लेगा लेकिन जो जज्बा हमारे पास है वह कहां से आएगा।
जरा याद कीजिए वह समय जब इंदौर में चारों ओर बास मारती कचरा पेटियां पड़ी होती थीं। तब इंदौर में मालिनी गौड़ महापौर थीं और मनीष सिंह नगर निगम कमिश्नर बनकर आए थे। सबसे पहले शहर को खुले में शौच से मुक्त किया गया। फिर शुरू हुआ शहर से कचरा पेटियों को मुक्त करने का काम। डोर टू डोर कचरा संग्रहण शुरू हुआ। परिणाम यह हुआ कि शहर से कचरा गायब हो गया। फिर इसी कचरे से सीएनजी बनाई जाने लगी। तब इंदौर स्वच्छता में लगातार देश में नंबर वन आने लगा। नए-नए प्रयोग होने लगे। बैकलेन और छोटे-मोटे नाले भी कुर्सी पर बैठकर चाय पीने लायक हो गए।
इसी बीच कोरोना महामारी भी आई। तब तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह इंदौर नगर निगम के कमिश्नर थे और मनीष सिंह इंदौर के कलेक्टर बन चुके थे। महापौर मालिनी गौड़ ही थीं। तीनों ने मिलकर इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया और फिर नंबर वन का खिताब ले आए। इसके बाद निगम कमिश्नर के रूप में प्रतिभा पाल आईं, उन्होंने भी यह जज्बा बरकरार रखा।
सातवीं और आठवीं बार की कहानी थोड़ी चिन्ता बढ़ाने वाली रही। आठवीं बार की जीत पर शहर को भी शंका होने लगी थी। जनप्रतिनिधियों ने बिल्कुल ही ध्यान देने बंद कर दिया था। तभी सीएम डॉ.मोहन यादव ने इस पर संज्ञान लेना शुरू किया। शिवम वर्मा को निगमायुक्त बनाकर इंदौर लाया गया। अपर आयुक्त अभिलाष मिश्रा की नियुक्ति हुई, लेकिन राजनीतिक सहयोग पहले जैसे नहीं मिल रहा था। सीएम की मॉनिटरिंग जारी रही। शिवम वर्मा ने पूरी ताकत लगा दी। महापौर पुष्यमित्र भार्गव का भी सपोर्ट मिला, जिसका परिणाम आठवीं बार का यह तमगा रहा।
अब चिन्ता इस बात की है कि क्या आगे यह सफर जारी रहेगा? जनता तो तैयार है, अफसर भी तैयार ही रहेंगे, लेकिन क्या जनप्रतिनिधि इसके लिए तैयार हैं? सोचिएगा जरूर।