और कितने मासूमों की जान लेकर तुम्हारी भूख मिटेगी हैवानों….


मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में जो कुछ भी हुआ वह मानवता को शर्मसार करने वाला है। ऐसी घटनाएं होती हैं तो कुछ दिनों तक लकीर पीटने की सरकारी कवायद चलती है, फिर सब कुछ पहले जैसा ही चलने लगता है।
कोई भी दवा के निर्माण की अनुमति के लिए देश में कड़े कानून हैं। कई परीक्षण होते हैं, इसके बाद दवा को बाजार में लाने की मंजूरी दी जाती है। इतने कानूनों-परीक्षणों के बाद भी तमिलनाडु में बना कोल्ड्रिफ कफ सिरप कैसे बाजारों में आ जाता है।
दरअसल अपने देश में मेडिकल माफिया ने पूरे तंत्र पर कब्जा कर रखा है। निजी अस्पतालों की लूट-खसोट पर तो सरकार आंखें मूंदे रखती ही है, अब दवा कंपनियों को भी लूटने के लिए छोड़ दिया गया है। दवा कंपनियां मुनाफे के लिए कुछ भी कर जाती हैं, लेकिन जब तक किसी की जान नहीं जाती, सरकार के सारे मापदंड फाइलों में ही बंद रहते हैं।
दवा कंपनियों की तरफ से सारे संबंधित सरकारी विभागों को हर माह अच्छा-खासा चढ़ावा भी दिया जाता है। इसके कारण इनके निरीक्षण-परीक्षण सिर्फ कागजों पर ही होते रहते हैं। सरकार का दवाओं की कीमतों पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। ज्यादा कीमत होने से इसे बेचने वालों से लेकर इसे लिखने वाले डॉक्टरों तक को भारी रकम चुकाई जाती है। इसके लिए दवा कंपनियां मोटी तनख्वाह पर एमआर की नियुक्ति करती हैं। ताज्जुब तो तब होता है कि अधिक दवा लिखने वाले डॉक्टरों को गिफ्ट के रूप में कार तक दे दी जाती है।
यह विडंबना ही है कि चाहे कोई भी सरकार आ जाए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार उपलब्ध कराने पर उसका ध्यान नहीं रहता है। देश के अधिकांश सरकारी अस्पताल किसी काम के नहीं बचे। लोग निजी अस्पतालों में खुद को लुटवाने के लिए जाते हैं। इस पर अगर दवा भी जानलेवा हो तो ऐसी सरकारों को सरकार कहलाने का हक नहीं।
आखिर दवा बनाने वाली कंपनियां ऐसी जहरीली दवाएं बाजार में लाने की सोच कैसे लेती हैं? कंपनी का मालिक तो आखिर कोई इंसान ही होगा।
राक्षसों के भूख की भी एक सीमा होती है, लेकिन इनकी भूख की कोई सीमा ही नहीं है।
आखिर और कितनी जान लेकर तुम्हारी भूख मिटेगी हैवानों…