इंदौर की सराफा चौपाटी में दुकानदारों से हुई थी चंदा वसूली, खुद अध्यक्ष ने स्वीकारी यह बात, आखिर किसके पास जाने वाली थी रकम.


इंदौर। सराफा चौपाटी को लेकर चल रहे विवाद के बीच यह बात सामने आई है कि दुकानदारों से चंदे के रूप में रकम की वसूली हो रही है। यहां लगातार दुकानों की संख्या बढ़ती जा रही है। कई व्यापारी तो ऐसे हैं, जो छह माल पहले ही दुकान लेकर आए हैं। अब इस रकम वसूली की बात को खुद चौपाटी एसोसिएशन के अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया है। यहां सवाल यह है कि यह रकम आखिर किसके पास जाने वाली थी?
बताया जाता है कि यह रकम दुकानों की संख्या बढ़ाने और सदस्यता के नाम पर ली जा रही थी। सराफा के व्यापारी बताते हैं कि पहले यहां सिर्फ 40 दुकानें लगती थीं, लेकिन बाद में जिनकी संख्या बढ़कर 80 हो गई। अब हालत यह है कि यहां करीब 200 दुकानें लग रही हैं। हर दिन इन दुकानों में इजाफा होता जा रहा है। सराफा व्यापारियों के विरोध के बाद यह बात सामने आई कि दुकानदारों से ढाई लाख रुपए की मोटी रकम वसूली जा रही है। इसके लिए 51 हजार रुपए एडंवास बतौर लिए गए हैं। बाकी की रकम दुकान की स्थिति स्पष्ट होने के बाद देनी थी।
चौपाटी संघ अध्यक्ष ने स्वीकारी बात
सराफा चौपाटी संघ के अध्यक्ष राम गुप्ता ने अपने वॉट्सएप स्टेट्स पर इस बात को खुद ही स्वीकार किया है। राम गुप्ता ने लिखा है कि 51,000 रुपए की बात आपके समक्ष आई थी, उसमें मेरी या चौपाटी के किसी अन्य पदाधिकारी की कोई भूमिका नहीं थी। क्योंकि, यह राशि मेरे या चौपाटी के नाम पर अवैध रूप से वसूली गई थी। हमारी कोशिशों से संबंधित व्यक्ति को वो राशि लौटा दी गई है। मैं स्पष्ट करता हूं कि न तो मैं और न ही रात्रिकालीन सराफा चौपाटी संगठन किसी भी प्रकार का नया सदस्यता शुल्क ले रहा है। अतः सभी व्यापारियों से अनुरोध है कि यदि इस तरह की कोई बात सामने आती है तो हमारे संज्ञान में लाएं। राम गुप्ता के बयान से यह स्पष्ट है कि दुकान बढ़ाने और नई सदस्यता शुल्क के नाम पर व्यापारियों से किसी बिचौलिए ने 51 हजार रुपए प्रति दुकान लिए हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल कहां जानी थी रकम
इस मामले में नगर निगम की भूमिका काफी संदिग्ध मानी जा रही है। जब महापौर ने सराफा चौपाटी के लिए कमेटी बनाई और उस कमेटी द्वारा नेगेटिव रिपोर्ट देने के बाद भी महापौर के अड़ियल रवैये से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल यह है कि जब नगर निगम की कमेटी ने भी चौपाटी को खतरा बताकर कहीं और शिफ्ट करने की सिफारिश कर दी, इसके बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि अब महापौर उसे नहीं शिफ्ट करने की जिद कर बैठे हैं। सवाल कई सारे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि व्यापारियों से वसूली गई रकम आखिर किसके पास जाने वाली थी?