सायबर जालसाजी के नाम पर इमोशनल फ्रॉड-कंट्रोल.


कम्प्यूटर के की बोर्ड पर एक 'की' होती है - Ctrl यानी कंट्रोल की। इस नाम से फिल्म बनाने के बाद अब आई है कंट्रोल। इस फिल्म का विषय साइबर ठगी या डिजिटल लूट। फिल्म सवाल उठाती है-क्या हमारी कमाई सच में डिजिटल डिवाइसों में सुरक्षित हैं? एक गलती से आपकी मेहनत की कमाई को कोई कुछ सेकेंड्स में ही गायब हो सकती है। आपका अकाउंट खाली हो सकता है। स्कैमर्स के पास ढेर सारे तरीके होते हैं आम आदमी को ठगने के। एआई की मदद से यह और भी आसान हो गया है।
कंट्रोल फिल्म की कहानी अब कोई नया विषय नहीं है, बड़े कलाकार भी नहीं है, कहानी लचर तरीके से फार्मूलाबद्ध होकर चलती है। इस कथित एक्शन-थ्रिलर के निर्देशक सफदर अब्बास और नाहिद शाहहैं। कहानी एक इंडियन मिलिटरी अकेडमी के प्रशिक्षु अभिमन्यु की है, जिसकी परफेक्ट लाइफ तब उथल-पुथल में बदल जाती है जब उसके दोस्त और बहनोई देव की आत्महत्या हो जाती है। अभिमन्यु को पता चलता है कि इसके पीछे साइबर क्रिमिनल्स का हाथ है, जो डेटा चोरी और ऑनलाइन धमकियों के जरिए लोगों की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं।
जामताड़ा वेब सीरीज में बताया गया था कि किस तरह ये लुटेरे काम करते हैं। इसमें खलनायक एक ही है और बाकी सब उसके बुद्धिहीन अनुयायी है। ''वो अकेला ही है, इसीलिए तो कर पाया।'' फिल्म में बताया कि दुश्मन के लिए ज़हर खरीदना हो तो मोल भाव नहीं किया करते। और खेल को समझे बिना जो बाजी खेलता है, वह खिलाड़ी नहीं, अनाड़ी होता है।
फिल्म डिजिटल सेफ्टी, साइबर क्राइम और टेक्नोलॉजी के अंधेरे पक्ष पर फोकस करती है, और दर्शकों को सवाल उठाने पर मजबूर करती है कि क्या हम वाकई अपने डिजिटल जीवन को कंट्रोल कर पा रहे हैं? 1 घंटा 56 मिनट की यह फिल्म सस्पेंस और एक्शन पर निर्भर है। आज के डिजिटल युग में डेटा चोरी, हैकिंग और ऑनलाइन ब्लैकमेल जैसी समस्याओं को पेश किया गया है। यह 'ब्लैक मिरर' जैसी एंथोलॉजी स्टाइल की याद दिलाती है, लेकिन भारतीय संदर्भ में। जांच के दौरान साइबर वेब का जाल जटिल दिखाया गया है कि दर्शक कन्फ्यूज़ ही रहता है।
कहानी की गहराई की कमी लगाती है। साइबर क्रिमिनल्स का मोटिव और बैकस्टोरी ज्यादा एक्सप्लोर नहीं की गई, जिससे थ्रिलर का पंच कमजोर पड़ जाता है। आत्महत्या का ट्रिगर जल्दी सुलझ जाता है, लेकिन उसके इमोशनल इम्पैक्ट को डील करने में फिल्म हिचकिचाती है।
महिला पात्रों की उपस्थिति फिलर जैसी है।
करवा चौथ के दिन रिलीज इस फिल्म में कंट्रोल दर्शकों के हाथ में ही है। एक गैरजरूरी फिल्म !
कंट्रोल टालनीय फिल्म है।
Article By :
-डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार
फिल्म डिजिटल सेफ्टी, साइबर क्राइम और टेक्नोलॉजी के अंधेरे पक्ष पर फोकस करती है, और दर्शकों को सवाल उठाने पर मजबूर करती है कि क्या हम वाकई अपने डिजिटल जीवन को कंट्रोल कर पा रहे हैं?