एमपी को गजब बनाकर ही मानेंगे सारे सरकारी विभाग.


मध्यप्रदेश पर्यटन निगम का एक विज्ञापन है-एमपी अजब है, सबसे गजब है। यह सूत्र वाक्य यहां के सभी विभाग पूरे तन-मन-धन से चरितार्थ करते रहते हैं। पिछले कुछ दिनों में ही कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिससे एमपी ने पूरे देश में सोशल मीडिया पर नाम कमाया है।
अब शहडोल के सरकारी स्कूल का ही मामला देख लीजिए। एक दीवार पर चार लीटर पेंट लगाने के लिए 168 मजदूर और 65 राजमिस्त्री लग गए। कितनी खराब होगी बेचारी दीवार, अब माट साहब भी क्या करते, उन्होंने दीवार पेंट कराने में पूरी ताकत लगा दी। 1.07 लाख रुपए का बिल बना और पास भी हो गया। ऐसा ही एक और मामला है निपनिया गांव का है, जहां पर 20 लीटर पेंट के लिए 2.3 लाख रुपए का बिल बनाया गया। यहां 10 खिड़कियों और चार दरवाजों को रंगने के लिए 275 मजदूरों और 150 राजमिस्त्रियों को लगाया गया। एक चमत्कार और है कि 5 मई 2025 को इसका बिल बना और प्रिंसिपल ने एक महीने पहले ही 4 अप्रैल को ही इसे सत्यापित कर दिया।
अब जरा पूरे देश में नाम कमा चुके भोपाल के 90 डिग्री वाले रेलवे ओवरब्रिज की बात कर लें। पुल कई वर्षों से बन रहा था। रेलवे ने भी डिजाइन पर आपत्ति ली, लेकिन सरकारी अंदाज में नजरअंदाज किया जाता रहा। कांग्रेस ने इस मामले को उठाया तो यह कहकर चुप्पी साध ली गई कि विपक्ष का तो काम ही है हर बात पर पेंच फंसाना। फिर यह तस्वीर उछल कर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। खूब हो-हल्ला मचा। सीएम तक मामला पहुंचा और अंतत: आठ इंजीनियर नप गए।
हाल ही में एक और मामला गजब का हुआ? सीएम के काफिले की गाड़ियों ने रतलाम में डीजल भरवाया। एक-एक कर के 19 गाड़ियां जब अचानक बंद हो गईं तो हाय-तौबा मची। पता चला कि डीजल में पानी मिला हुआ था। सारे सरकारी विभाग जागे। पेट्रोल पंप सील कर दिया गया। पेट्रोल पंप की जांचों का आदेश धूल खाती फाइलों से फिर से साफ-सुथरा कर बाहर निकाला गया। तब तक सोशल मीडिया पर जमकर हंसी उड़ चुकी थी।
एक ताजा मामला इंदौर का है। जहां के विजय नगर जैसे पॉश इलाके की सड़क चार फीट धंस गई। अब देश के सबसे साफ शहर में ऐसा हो तो चर्चा लाजमी है। सोशल मीडिया से लेकर नेशनल मीडिया तक यह खबर छाई रही। लोगों ने कहा-इंदौर की सड़क ने आत्महत्या कर ली। मामला गरमाया तो नगर निगम भी जागा। एक टेलीकॉम कंपनी का कॉलर पकड़ा गया और तीन लाख जुर्माना लगाकर मामला रफा-दफा हुआ।
खैर, मामले अभी और भी हैं। चर्चा फिर कभी। लेकिन, इन मामलों से साफ जाहिर है कि सारे सरकारी विभाग एमपी को अजब के साथ गजब बनाने में जुट गए हैं। अगर समय रहते इन पर लगाम नहीं कसी गई तो सचमुच एमपी में गजब ही होगा।