बनारस की संस्कृति के प्रतीक थे ठुमरी सम्राट छन्नू लाल मिश्र .
-डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार
ठुमरी सम्राट और भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रमुख स्तंभ छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे. उनका अंतिम संस्कार कुछ ही समय पहले बनारस के मणिकर्णिका घाट पर किया गया. वे अपनी बेटी नम्रता मिश्रा के घर मिर्जापुर गए थे और वहीं सुबह सवा 4 बजे उन्होंने प्राण त्याग दिए.
पंडित छन्नूलाल मिश्र शास्त्रीय और अर्ध-शास्त्रीय संगीत को मिलाकर आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए.
वे पूर्वी ठुमरी, चैती, कजरी, दादरा, भजन और खयाल के मास्टर थे. उनकी गायकी में उल्लास और अध्यात्म का अनोखा संगम था, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था. बनारस घराने को उन्होंने नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया.
काशी की होली, घाटों और लोक परंपराओं को उनकी गायकी ने अमर बनाया। गीत जैसे 'खेले मसाने में होली' उनकी पहचान बने। वे बनारस की संस्कृति के प्रतीक थे.
ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर नियमित कार्यक्रमों से उन्होंने शास्त्रीय संगीत को घर-घर पहुँचाया. दुनिया भर में पर भारतीय परंपरा को प्रतिष्ठित किया.
कई बॉलीवुड-फिल्मों में अपनी आवाज दी, जिससे शास्त्रीय संगीत को व्यापक दर्शकों तक पहुँचाने में मदद मिली.
छन्नूलाल जी 1936 की पैदाइश थे. कहते हैं न, कि बुढ़ापा अपने आप में बीमारी ही है. उनके प्रसिद्ध तबला वादक थे, पिता बद्री प्रसाद मिश्र संगीतकार थे और वे खुद तबला वादक पंडित अनोखेलाल मिश्र के दामाद थे. उनके पुत्र रामकुमार मिश्र भी एक जाने-माने तबला वादक हैं.
जब वे छह साल के थे, तब पिता से प्रारंभिक संगीत शिक्षा ली, नौ की उम्र में उस्ताद गनी अली साहब (किराना घराने) से खयाल गायकी सीखी, और बाद में ठाकुर जयदेव सिंह से प्रशिक्षण प्राप्त किया. वे किराना घराने और बनारस घराने की गायकी के प्रमुख प्रतिनिधि थे.
उनकी झोली सम्मानों से अटी रही.
2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2010 में पद्म भूषण, और 2020 में पद्म विभूषण मिला था उन्हें.
वे 2014 लोकसभा चुनाव में वाराणसी से भाजपा उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के प्रस्तावक बने, जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ी थी या घटी थी, मैं नहीं कह सकता!
Article By :
-डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार
काशी की होली, घाटों और लोक परंपराओं को उनकी गायकी ने अमर बनाया। गीत जैसे 'खेले मसाने में होली' उनकी पहचान बने। वे बनारस की संस्कृति के प्रतीक थे.