इंदौर की राजनीति में नया ट्रेंड, जनसंपर्क विभाग ने मंत्री पुत्र को मान लिया मंत्री, प्रशासनिक अधिकारियों संग दौरे का जारी किया निमंत्रण.


इंदौर। जनसंपर्क विभाग ने अपने वॉट्सएप ग्रुप पर मीडिया के लिए एक निमंत्रण जारी किया। इसमें बताया गया था कि विधानसभा एक में पूर्व विधायक यानी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश आज एरोड्रम थाने के पीछे लक्ष्मी नगर रोड का दौरा करेंगे। यह दौरा जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों के साथ होगा।
जनसंपर्क विभाग के ऑफिशियल वॉट्सएप ग्रुप से जारी यह सूचना यह बताने के लिए काफी है कि विभाग ने मंत्री पुत्र को मंत्री मान लिया है। जहां तक पूर्व विधायक का सवाल है, वे विधानसभा एक के पूर्व विधायक नहीं हैं, विधानसभा तीन के हैं। और रही बात पूर्व विधायक के रूप में दौरे की तो यह सूचना सरकारी कैसे हो गई? क्या अब मंत्रीपुत्र और विधायक पुत्र ही प्राशासनिक अधिकारियों को निर्देश देंगे?
गोलू के बेटे ने भी ली थी बैठक
इससे पहले विधानसभा तीन के विधायक गोलू शुक्ला के बेटे अजनेश ने नगर निगम अधिकारियों की एक बैठक ली थी। इसमें उसने अपने तेवर भी दिखाए थे और अधिकारियों को निर्देश भी दिए थे। यह बात जब सीएम को पता चली तो उन्होंने गोलू को समझाइश भी दी थी और कहा था कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो कोई अधिकारी नहीं आएगा।
पार्षद पति तक तो ठीक था…
महिलाओं को जब राजनीति में लाया गया तो एक समस्या यह आई थी मैदानी काम करने की समस्या आई थी। इसके बाद पार्षद पतियों ने मोर्चा संभाला। बाद में यह परंपरा सी बन गई और आज भी पार्षद पति ही मैदान में रहते हैं। लेकिन, अब इससे अलग इंदौर में एक नई परिपाटी मंत्री पुत्रों की चल निकली है।
सभी विधायकों को दे देनी चाहिए छूट
ऐसे में इंदौर ही नहीं पूरे प्रदेश के सभी विधायकों को अपने बेटों, रिश्तेदारों से काम कराने की छूट दे देनी चाहिए। तब किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होगी और बेटों की लॉचिग में भी परेशानी नहीं आएगी। गोलू अपने बेटे को लांच कर ही रहे हैं, आकाश पहले से लांच हैं। मालिनी गौड़ को भी छूट दे देनी चाहिए कि एकलव्य गौड़ पूरे शहर में अधिकारियों के साथ दौरे करें। मधु वर्मा, महेंद्र हार्डिया, मनोज पटेल, उषा ठाकुर को भी अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देना चाहिए।
फिर 'बल्लेबाजी' करने उतरे आकाश
इस नए ट्रेंड से अफसरों की मुसीबत बढ़ गई है। पहले से ही इंदौर में दो-दो मंत्री हैं। अब एक सुपर मंत्री के 'बल्लेबाज' पुत्र की भी सुननी पड़ रही है। नगर निगम अफसर तो पहले से ही डरे हुए हैं कि पता नहीं कब पूर्व विधायक जी बल्ला चला दें। कोर्ट-कचहरी का भी कोई फायदा नहीं, बाद में सब रफा दफा हो जाएगा। ऐसे में अफसरों के लिए काम करना भी मुश्किल हो रहा है। मंत्री की सुनें, विधायक की सुनें या उनके पुत्रों की सुनें।