टीनू जैन का ‘व्यवहार’ और मंत्री विजयवर्गीय का ‘साथ’ काम आया, ग्रामीण क्षेत्र में तुलसी पहलवान ने ‘भिया’ को दी ‘पटखनी’.


इंदौर। काफी जद्दोजहद के बाद भाजपा ने इंदौर के नगर और जिला अध्यक्ष का घोषणा कर दी है। टीनू जैन को जहां मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और उनके पुत्र आकाश का साथ मिला, वहीं उनका ‘व्यवहार’ भी काम आया। इधर, ग्रामीण क्षेत्र में मंत्री तुलसी सिलावट, कैलाश विजयवर्गीय को पटखनी देते हुए अपने समर्थक अंतर दयाल को जिलाध्यक्ष बना लाए।
उल्लेखनीय है कि चिंटू वर्मा को जिला अध्यक्ष बने अभी एक साल ही हुए हैं, इसलिए यह तय माना जा रहा था कि पार्टी के मापदंडों के हिसाब से उन्हें रिपीट किया जा सकता है। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय इसके लिए पहले तो अड़े हुए थे, लेकिन जब तुलसी सिलावट ने पेंच फंसाया तो उन्हें पीछे हटना पड़ा। रायशुमारी में सांवेर के विधायक और कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट के साथ ही पूरी विधानसभा के नेताओं ने वर्मा के नाम की जगह अंतर दयाल का नाम दे दिया। देपालपुर विधायक मनोज पटेल और महू विधायक उषा ठाकुर ने भी वर्मा को सपोर्ट न करते हुए तुलसी सिलावट का साथ दे दिया।
आखिर कैसे कटा चिंटू वर्मा का पत्ता
अंतर दयाल सोनकच्छ के विधायक राजेश सोनकर के भी खास माने जाते हैं। राजेश सोनकर के सोनकच्छ विधायक बनने के बाद उनकी जगह घनश्याम नारोलिया की नियुक्ति की गई थी, लेकिन विजयवर्गीय के दबाव में उन्हें हटाकर स्थायी रूप से चिंटू वर्मा को अध्यक्ष बना दिया गया। बताया जा रहा है कि तब से राजेश सोनकर भी बदला लेने की ताक में थे। इसके अलावा मनोज पटेल भी चिंटू वर्मा को निपटाने में लगे थे, क्योंकि वर्मा देपालपुर से दावेदारी जताने लगे थे। यही कारण है कि उन्हें रोकने के लिए विधायक मनोज पटेल ने उषा ठाकुर और मंत्री तुलसी सिलावट से हाथ मिलाकर किसी दूसरे नाम की पैरवी की है।
मंत्री गुट के सामने एक ही विकल्प
दो मंत्रियों की लड़ाई में यह तय हो गया था कि मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की या तो नगर में चलेगी या ग्रामीण में। इधर, पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय विधानसभा चुनाव में ही दीपक जैन टीनू से नगर अध्यक्ष का वादा कर चुके थे। इसलिए वे अपने पिता कैलाश विजयवर्गीय पर टीनू के लिए दबाव बनाते रहे। दूसरी तरफ विधायक रमेश मेंदोला अपने खास समर्थक सुमित मिश्रा के नाम पर अड़े हुए थे। विजयवर्गीय समझ चुके थे कि अगर नगर और ग्रामीण दोनों पर दावेदारी करेंगे तो सफल नहीं होंगे इसलिए ग्रामीण का मोह छोड़ना पड़ा।
सबसे ज्यादा ‘मतों’ के बाद भी हारे मिश्रा
इस पूरी उठापटक में सबसे ज्यादा नुकसान सुमित मिश्रा का हुआ। करीब 14 साल की उम्र से पार्टी के लिए सक्रिय रहे मिश्रा को अब तक कोई बड़ा पद नहीं मिला है। वार्ड से लेकर विधानसभा तक और स्कूल से लेकर कॉलेज तक भाजपा के लिए मोर्चा संभालने वाले मिश्रा को उम्मीद थी कि इस बार नगर अध्यक्ष की कुर्सी मिल ही जाएगी। रायशुमारी में भी सबसे ज्यादा लोगों ने सुमित मिश्रा का नाम दिया, फिर भी बेटे के दबाव के आगे मंत्री विजयवर्गीय ने मेंदोला समर्थक मिश्रा का राजनीतिक कैरियर तबाह कर दिया।
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