भाजपा जिलाध्यक्ष को लेकर ‘पॉलिटिक्स’, देपालपुर के ‘रॉबिन हुड’ ने किया ‘सरेंडर’, चिंटू का कद घटाने के लिए की ‘तुलसी’ की पूजा .


इंदौर। भाजपा नगर अध्यक्ष के साथ जिला अध्यक्ष के लिए भी कवायद चल रही है। इंदौर जिलाध्यक्ष को लेकर जो राजनीति हो रही, उसे देखकर भाजपा में चर्चाओं का बाजार गर्म है। वर्तमान जिला अध्यक्ष चिंटू वर्मा का कद घटाने के लिए देपालपुर के विधायक मनोज पटेल का स्टैंड किसी को समझ नहीं आ रहा। देपालपुर के रॉबिन हुड कहे जाने वाले पटेल अपनी तरफ से कोई नाम नहीं दे पाए। यहां तक तो ठीक है, लेकिन चिंटू के विरोध के लिए मंत्री तुलसी सिलावट के साथ खड़े हो जाना किसी को समझ नहीं आ रहा।
भाजपा में इस बात की चर्चा है कि जब से चिंटू वर्मा ने जिला अध्यक्ष का पद संभाला है, ग्रामीण क्षेत्रों में संगठन मजबूत हुआ है। विशेषकर देपालपुर सहित कई अन्य इलाकों में चिंटू ने अच्छा काम किया है। यह सब देपालपुर के विधायक मनोज पटेल को नहीं पच रहा। वे किसी भी हाल में चिंटू को वहां से बाहर करना चाहते हैं, जबकि चिंटू लगातार वहां अपना आधार मजबूत करते रहे हैं। इसी बीच पटेल ने लोगों का भरोसा ही खोया है।
पटेल को कोई समझ नहीं पाया
मनोज पटेल को पता नहीं रह-रह कर किसकी सवारी आती है। जब वे अपने पिता के नाम पर पहली बार देपालपुर से टिकट लेकर आए थे और विधायक बन गए थे तब भी उनका व्यवहार किसी के समझ नहीं आया। वे खुद को सबसे ऊंचा समझने लगे और फोन नहीं उठाना उनकी आदत बन गई। कई बार बैठकों में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी उन्हें समझाइश दी और लोगों ने शिकायत की, लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि अगले चुनाव में वे विधायकी गंवा बैठे।
देपालपुर के कार्यकर्ताओं को दिया धोखा
पार्टी और देपालपुर की जनता ने सबकुछ भुलाकर फिर उन्हें मौका दिया। लोगों को ऐसा लगा कि मनोज पटेल बदल चुके हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद ही वे फिर अपने पुराने रंग में आ गए। पहले तो फोन उठाने की ही समस्या थी, अब उनके मिलना भी मुश्किल हो गया। अब तो मिलने के लिए उनके खास समर्थक गणेश को पकड़ना पड़ता है। इस भी यह जरूरी नहीं कि गणेश फोन उठा ही ले और मनोज तक संदेश पहुंचा दे। परिणाम यह हुआ कि क्षेत्र की जनता से लेकर कार्यकर्ता तक परेशान होने लगे। अब जबकि पटेल ने जिला अध्यक्ष के लिए कोई नाम नहीं दिया, कार्यकर्ताओं में जबरदस्त नाराजगी है। कार्यकर्ता कह रहे हैं कि क्या उनके पास एक भी नाम नहीं था, जिसे वे आगे बढ़ाते।
सिलावट कब से भाजपा के हो गए?
जब जिलाध्यक्ष के लिए नाम देने की बारी आई तो मनोज पटेल अपनी तरफ से एक नाम नहीं दे पाए। मंत्री तुलसी सिलावट ने अंतर दयाल का नाम दिया और मनोज पटेल ने भी इनका समर्थन कर दिया। क्या पटेल यह भूल गए हैं कि तुलसी सिलावट भाजपा में कितने भरोसेमंद हैं। उनके लिए भाजपा में कहा जाता है कि उन्होंने मीठी गोली देने के अलावा कुछ नहीं किया। आज तक किसी भाजपा नेता या कार्यकर्ता का कोई काम नहीं किया। जो भी उनसे मिलने जाता है, उससे गले मिलकर वादा कर लेंगे, लेकिन काम नहीं करेंगे। तुलसी सिलावट जब कांग्रेस में थे, तब भी उनकी विश्वसनीयता पर संदेह था और भाजपा में आने के बाद तो वे बिल्कुल ही अविश्सनीय हो गए। अगर सिलावट का दांव नहीं भी चला तो वे पलक झपकते ही चिंटू के हो जाएंगे और हार-पगड़ी पहनाते नजर आएंगे।
विशाल पटेल अलग ही कर रहे तैयारी
कांग्रेस से भाजपा में आए विशाल पटेल अपनी अलग ही तैयारी में लगे हैं। वे मनोज पटेल के लिए चिंटू वर्मा से ज्यादा मुसीबत बनने वाले हैं। फिलहाल विशाल अपने धंधे-पानी में जुटे हुए हैं। क्षेत्र में उनका नेटवर्क है ही। विशाल यह सोच रहे हैं कि अभी समय है कमाई कर ली जाए, बाद में ‘व्यवहार’ से टिकट ले आएंगे। अगर वे टिकट ले आते हैं तो मनोज का पत्ता वैसे ही कट जाएगा और यह भी तय है कि अगर विशाल सफल नहीं होते तो चिंटू भी टिकट लाने का दम-गुर्दा रखते हैं। ऐसे में कम से कम तुलसी सिलावट तो मनोज पटेल के काम कत्तई नहीं आने वाले।
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