साढ़े तीन करोड़ पौधों की बलि के बदले 51 लाख पौधे!.
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शहर में 51 लाख पेड़ लग रहे हैं। चारों ओर पेड़ लगाने का माहौल है। इंदौर को हरा बनाने के लिए पूरे देश की नर्सरियां खाली हो रही हैं। जिन लोगों के प्रयासों से ऐसा हो रहा है, उनका इंदौर पर आजीवन एहसान रहेगा। मैंने सोचा चलो अपन भी इस बड़े अभियान में छोटी से आहुति दे आएं।
एक ऐसे ही मैदान पर पहुंचा, जहां पेड़ लगाने के लिए पिछले दिनों काफी सारे गड्ढे किए गए थे। नेताओं के फोटोबाजी का सत्र समाप्त हो चुका था और इक्का-दुक्का पट्ठे ही वहां नजर आ रहे थे। एक तरफ देखा तो ढेर सारे पौधे रखे हुए थे।
मैंने एक पौधा उठा लिया, तभी आवाज आई।
आओ, आओ तुम भी मेरे साथ सेल्फी ले लो।
मैं चौंका, आसपास कोई नजर नहीं आया। हां, दूर कहीं नेताजी के एक-दो पट्ठे नजर आ रहे थे। उनकी आवाज तो मेरे पास तक आ नहीं सकती।
मैंने सोचा वहम है और पौधा लेकर एक गड्ढे में लगाने लगा। और सचमुच इतनी दूर पेट्रोल जलाकर आने के बाद सेल्फी से खुद को रोक नहीं पाया।
जैसे ही सेल्फी ली, फिर से आवाज आई-हो गया तुम्हारा।
मैं फिर चौंका। आवाज कहां से आई सोचने लगा, तभी फिर से आवाज आई, चौंक क्यों रहे हो, मैं वही पौधा बोल रहा हूं जिसे तुमने रोपा है।
मुझे भरोसा तो नहीं हुआ, लेकिन फिर भी जांचने के लिए मैंने सवाल किया-तुम बोल कैसे सकते हो?
फिर आवाज आई, बोलते तो हम हैं ही, लेकिन तुम लोग सुनते कहां हो? तुम लोग सिर्फ अपना मतलब देखते हो। एक तो तुम यह चाहते हो कि हमारी देखभाल भी ना करना पड़े और तुम्हें हम छांव, हवा, ऑक्सीजन और लकड़ी देते रहें।
इतना सबकुछ होने के बाद भी हमारी बिरादरी की चिन्ता तुम्हें नहीं होती। सड़क और मकान के नाम पर हमेशा हमारी बलि ले ली जाती है। हमें काटकर सीमेंट की सड़क बना दी जाती है और जब गर्मी के दिनों में सड़क आग उगलती है तो तुम्हें हमारी याद आती है।
मैंने कहा-ऐसा नहीं है, जितनी संख्या में पेड़ काटे जाते हैं उससे अधिक पेड़ लगाए भी गए हैं।
आवाज आई-रहने दो, यह सब तुम मुझे मत समझाओ।
मैंने कहा-चलो पिछली बार की बातें रहने दो, इस बार तो खुश होगे, 51 लाख पौधे लग रहे हैं। जब सब पेड़ बन जाएंगे तो इंदौर में एसी-कूलर की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।
आवाज आई-तुम बड़ी शान से 51 लाख पौधों की बात कर रहे हो। पर्यावरणविदों और वन विभाग से जाकर पूछो। हाल ही में एक अखबार में छपा भी था कि 50 साल पुराना एक पेड़ पांच हजार नए पेड़ों के बराबर होता है। इस खबर में वन विभाग के एक पूर्व अधिकारी ने कहा भी था कि पांच हजार नए पेड़ जितनी इकोलॉजिकल सर्विस 10 साल बाद देंगे, उतन पचास साल पुराना एक अकेला पेड़ दे देता है। पांच हजार पेड़ तो तुम हुकुमचंद मिल में ही काट रहे हो, जिनमें से दो हजार पर रेड नंबर की प्लेट भी लगा दी गई है। एमओजी लाइन में दो हजार पेड़ काटे जाने हैं, जिसकी शुरुआत हो चुकी है। चार-पांच सौ पेड़ तो काटे भी जा चुके हैं।
मैंने कहा-क्या बकवास कर रहे हो?
आवाज आई-सब कुछ कागजों पर है। अपने नुमाइंदों से पूछो जिन्होंने जमीनों के सौदे किए हैं और जिन्होंने हमारे पूर्वजों की जान लेने की अनुमति दी है। यह तो खुलेआम होना है, बहुत कुछ तो चोरी-छुपे भी होता है। मल्हार आश्रम में सैकड़ों पेड़ काटकर तुम लोगों ने जड़ों पर मलबा डाल दिया। जाकर देखो, अभी भी दिख जाएंगे जख्मों के निशान।
मैंने कहा-अगर ऐसा हुआ भी है तो 51 लाख पौधे लगा तो रहे हैं?
आवाज आई-अगर तुम्हें गणित आती है तो सिर्फ हुकुमचंद मिल और मल्हारआश्रम के पेड़ों की संख्या को पर्यावरणविदों के फार्मूले पर रखोगे तो कम से कम साढ़े तीन करोड़ पेड़ों की बलि लेना जा रहे हो? इसके एवज में तुम्हारे हिसाब से वर्ल्ड रिकॉर्ड होगा, लेकिन हमारे हिसाब से मात्र 51 लाख पौधे। उस पर भी 60 करोड़ खर्च…यह सब तुम्हीं लोग कर सकते हो…
मेरे पास तो कोई जवाब नहीं था, आपके पास है क्या?
-अर्द्धेन्दु भूषण
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