पुष्पा 2: द रूल : मगज पर जोर देने का नहीं…मनोरंजक फ़िल्म…पैसावसूल !.


हिन्दी फिल्मों का स्टार है सल्लू (सलमान खान) और तेलुगु का स्टार है अल्लू (अर्जुन)। पुष्पा 2 अल्लू की फ़िल्म है। इस 201 मिनट की फ़िल्म में 180 मिनट अल्लू ही स्क्रीन पर रहता है। अल्लू वो कर सकता है जो सल्लू नहीं कर सकता।
दोनों का घराना फ़िल्मी है। अब सल्लू के इलाके में अल्लू घुस आया है। तेलुगु स्टार की हिन्दी की फिल्में भी खूब चल पड़ी हैं। चल क्या पड़ी हैं , जमके माल कूट रही है! जैसे सल्लू की फ़िल्में, वैसी अल्लू की ! दोनों का माजना एक है! दोनों की फ़िल्में मार्केटिंग, विज्ञापन और तिकड़मों से चलती हैं। दोनों में कोई भी क्लास कलाकार नहीं है! दोनों मास के स्टार हैं। मास को पसंद आता है छिछोरापन, फ़ोकट की मारधाड़, खजुराहो की भाव-भंगिमाएं !
अल्लू की दो नम्बरवाली पुष्पा फिल्म ने एडवांस बुकिंग में ही कई रेकॉर्ड बना डाले हैं। एक नंबर पुष्पा में वह मज़दूर से लाल चन्दन की तस्करी करनेवाला बड़ा तस्कर बन गया था। इसमें वह इंटरनेशनल तस्कर बन जाता है। सारे ऐसे काम करता है जो गैरकानूनी हैं, वह पर्यावरण को खतरा हैं, लॉ एंड ऑर्डर को तबाह करनेवाला है। खुद को ब्रांड कहता है और कानून को जेब में रखता है। वह इतना धन कमा चुका है कि एमएलए खरीदकर सीएम बदलवा देता है। गरज़ यह कि आम आदमी फिल्म दर्शक के रूप उसमें अपनी ही छवि देखता है। महंगी कारें, खुद का हेलीकॉप्टर, महल जैसा घर और रश्मिका मंदाना जैसी लुगाई ! नैतिकता और ईमानदारी का अचार कौन डाले, क्यों डाले ?
तो आम दर्शक के लिए पुष्पा दो नंबर वाली मस्त पिच्चर है भिया ! अल्लू अपने इंदौरी सल्लू से भी बड़का है। मस्त डांस कियेला है। झकास फाइट मारा है। इमोशनल सीन अच्छे दिए हैं। इसमें बेचारी रश्मिका के वास्ते कुछ काम था ही नहीं, सिवाय अल्लू पर लट्टू होने के।
फिल्म की कहानी तीन प्रमुख ध्रुवों के इर्द-गिर्द घूमती है - पुष्पराज बनाम सीएम, पुष्पराज बनाम पुलिस एसपी शेखावत और पुष्पराज का बचपन का आघात।
कहानी पुष्पराज की यात्रा को आगे बढ़ाती है, जो अब चंदन तस्करी का बेताज बादशाह बन चुका है। उसकी पर्सनल और प्रोफेशनल चुनौतियों के इर्द-गिर्द घूमती इस फिल्म में कई परतें हैं—सीएम को चुनौती देना, पुलिस अफसर भंवर सिंह शेखावत (फहाद फासिल) से बदला लेना, और अपने परिवार का खोया सम्मान वापस पाना।
पुष्पा का सफर उसे जापान से लेकर दक्षिण भारत तक और अंतरराष्ट्रीय तस्करी की दुनिया में गहराई तक ले जाता है।
डायरेक्टर सुकुमार ने फिल्म के हर फ्रेम को इस तरह सजाया है कि दर्शक उसमें डूब जाएं। कहानी को भले ही कुछ जगहों पर खींचा गया है, लेकिन उनकी पकड़ कभी ढीली नहीं पड़ती। पोलिश सिनेमैटोग्राफर कुबा ब्रोजेक ने जंगल और शहरों के दृश्यांकन में गजब का तालमेल दिखाया है। जहां पुष्पा: द राइज में संगीत फिल्म की जान थी, वहीं पुष्पा 2 इस मामले में थोड़ा पीछे रह जाती है। देवी श्री प्रसाद के गाने उतने प्रभावशाली नहीं हैं । बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के तनाव और ड्रामा को बनाए रखने में कामयाब होता है।
अल्लू अर्जुन और फहाद फासिल की जोड़ी ने फिल्म को उत्कृष्ट बनाया है। फिल्म की कहानी में भावनात्मक और नाटकीय तत्वों का गजब संतुलन है। जंगलों और इंटरनेशनल लोकेशंस का फिल्मांकन अद्भुत है। अल्लू अर्जुन के स्वैग और डायलॉग्स फिल्म की आत्मा हैं। लेकिन फिल्म का म्यूजिक उसकी सबसे कमजोर कड़ी है। फिल्म की अवधि (लगभग 3 घंटे, 21 मिनट) कहीं-कहीं भारी महसूस होती है। श्रीवल्ली के किरदार को उतना महत्व नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए था।
पुष्पा 2: द रूल एक पूरी तरह से मास एंटरटेनर फिल्म है। यह एक्शन, ड्रामा और भावनाओं का सही मिश्रण है। कमजोरियों के बावजूद, यह दर्शकों को बांधने में सफल रहती है। अगर आप सिर्फ मनोरंजन के लिए फिल्म देखना चाहते हैं, तो पुष्पा 2: द रूल आपको निराश नहीं करेगी। यह एक ऐसी फिल्म है, जो बड़े पर्दे पर देखने के लिए ही बनी है।
मगज पर जोर देने का नहीं। मनोरंजक फ़िल्म।
पैसावसूल !
Article By :
- प्रकाश हिन्दुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार
पुष्पा 2: द रूल एक पूरी तरह से मास एंटरटेनर फिल्म है। यह एक्शन, ड्रामा और भावनाओं का सही मिश्रण है। कमजोरियों के बावजूद, यह दर्शकों को बांधने में सफल रहती है। अगर आप सिर्फ मनोरंजन के लिए फिल्म देखना चाहते हैं, तो पुष्पा 2: द रूल आपको निराश नहीं करेगी।
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